Book Title: Prashamrati Prakaranam
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 165
________________ की प्रशमरति प्रकरणम् ॥७४॥ भावार्थ-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय अने काळ ए पांच अजीव छ, पुद्गल सिवायना चार अरुपी अने पुद्गल एक रुपी छे. २०७. | वे प्रदेशथी मांडीने अनन्त प्रदेशवाळा पुद्गल स्कंधो होय छे. प्रदेशरहित परमाणु कहेवाय छे. तेवा दरेक परमाणुमां एक वर्ण, एक गंध, एक रस अने वे स्पर्श होय छ. २०० विवेचन-प्रथम काव्यमा पुद्गळ द्रव्य एक रुपीछे एम कयुं तेटला उपरथी ते गंध, रस अने स्पर्श-रूप विना | रहेता ज़ नथी एम सूचव्युं छे. एटले परमाणुने विषे पण रूप (वर्ण) नी साथे गंध, रस ने स्पर्श रहेलाज होय छे एम | समजवु 'अने तेटला उपरथी ज तेनी रूपी संज्ञा के एम जाणवू. २०७ । स्कंधो वे प्रदेशी, गण प्रदेशी, चार प्रदेशी, संख्यात प्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी, यावत् अनंत प्रदेशी होय छे. "पर| माणु अप्रदेशी" तेनो बीजो विभाग न थाय तेवा होवाथी ते स्कंध शब्दथी बोलावाता नथी. तेने प्रदेश अथवा परमाणु ज कहेवामां आवे छे, ते पोतेज प्रदेश छे; तेना बीजा प्रदेशो होता नथी. तेना करतां सूक्ष्मतर एवो कोइ पुद्गळ विभाग होतो ज नथी. वर्ण, गंध, रस, स्पर्शादि गुणोने विषे द्रव्यप्रदेशो रहेला छे. एटले प्रदेशपणे सन्निहित थयेला जे वर्णादिक अवयवो ते अवयवोवडे ते सप्रदेशी कहेवाय छ, बाकी द्रव्य अवयववडे तो ते अप्रदेशी छे. शास्त्रमा कमु छ केकारणमेव तदन्त्यं, सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः। एकरसगन्धवर्णो, द्विस्पर्शः कार्यलिंगश्च ॥१॥ धर्मास्तिकायादि अजीव द्रव्यो औदायकादि भावमाथी कया कया भावमा वर्ते छे ते कहे छ: ॥७४॥ Jain Education For Personal Private Use Only Ilam wlainelibrary.org

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