Book Title: Pramukh Jain Grantho Ka Parichay Author(s): Veersagar Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 9
________________ परमपूज्य आचार्य श्री प्रज्ञसागरजी मुनिराज का मंगल आशीर्वाद 'अज्झयणमेव झाणं' "विज्जारहमारूढो मणोरहपहेसु भाँद जो चेदा। सो जिणणाणपहावी सम्मादिट्ठी मणेदव्वो।" अर्ध-जो आत्मा विद्या (ज्ञान) रूपी रथ में आरुढ़ होकर मनोरथ मार्ग में भ्रमण करता है, उसे जिनेन्द्रदेव के ज्ञान को प्रभावना करने वाला सम्यग्दृष्टि (मननपूर्वक) जानना चाहिये। जैन ग्रन्थ जैन संस्कृति के वाहक, उन्नायक और प्रचारक हैं। षट्खण्डागम एवं कषायपाहुड-ये ऐसे दो महान ग्रन्थ हैं, जिनका सम्बन्ध सीधे भगवान महावीर स्वामी को द्वादशांग वाणी से है। इसी के माध्यम से अनेकों आचार्यों ने जोव-मीमांसा एवं कर्म-मीमांसा कर अनेक रहस्यों का उद्घाटन किया है। आज भी वर्तमान में अनेक प्राचीन ग्रन्थ सुधीजनों को पढ़ने के लिए उपलब्ध हो रहे हैं, किन्तु किन प्रमुख आचायों ने जैन साहित्य जगत के लिए क्या योगदान दिया, इसके लिए भारतीय ज्ञानपीठ से प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय नामक कृति का प्रकाशन हो रहा है, जोकि सराहनीय कार्य है। इसके पठन-पाठन से सभी जिज्ञासुओं को एक नई दिशा मिलेगी। सम्पादक एवं प्रकाशक को मेरा मंगल आशीवाद है। आप शतायु हों. इसी तरह जैन शासन को प्रभावना करते रहें। Bionais (आचार्य प्रज्ञसागर गुनि) प्रतिष्ठा में, श्रीमान साहू अखिलेश जैन भारतीय ज्ञानपीठ लोदी रोड, नई दिल्ली-110003Page Navigation
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