Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 12
________________ प्रस्तावना परीक्षामुखकर्तारं श्री माणिक्य मुनीश्वरम् । विदांवरं प्रवंदेऽहं जैन न्याय प्रकाशकम् ॥१।। वृत्ति कारं प्रभाचन्द्र पाणिपात्रं निरम्बरं । नभाम्यत्र विधाभक्त्या तर्क शास्त्र प्रणायकम् ।।२।। "प्रमेय कमल मार्तण्ड" जैन न्यायका महान ग्रन्थ है, यद्यपि यह "परीक्षामुख" संज्ञक ग्रन्थ की टीका है किन्तु मौलिकसे कम नहीं है प्राचार्य श्री प्रभाचंद्र ने दि. जैन दर्शनका जो और जितना मर्म इस में खुलासा किया है अन्य ग्रन्थों में देखने को नहीं मिलता, जैसे मार्तण्ड ( सूर्य ) कमलोंको खिला देता है वैसे यह ग्रन्थराज प्रमेयोंको अर्थात् प्रमाणके विषयोंको खिला देता है (खुलासा कर देता है) विभिन्न दर्शनोंमें प्रमाणके स्वरूप में, उसकी संख्यामें, उसके विषय में तथा उसके फलमें विप्रतिपत्ति पाई जाती है । इसी प्रसंगको लेकर श्री माणिक्यनंदी प्राचार्य ने मंदबुद्धि वाले न्याय शास्त्रके रसिकों के लिये परीक्षामुख नामक ग्रन्थ की रचना की। यद्यपि प्राचार्य अकलंक देव कृत लघीयस्त्रय सिद्धिविनिश्चय आदि न्याय विद्याके उच्च कोटि के ग्रन्थ थे किन्तु ये सब मंद बुद्धि वालोंके लिये गहन थे उन मंद बुद्धि भव्योंके ज्ञानका ध्यान कर प्राचार्य माणिक्यनंदीने छोटा सा गागर में सागर भरने जैसा परीक्षामुख रचा । ग्रन्थ छोटा है किन्तु इसकी गहराई मापना कठिन है । आचार्य प्रभाचन्द्रने इस पर प्रमेय कमल मार्तण्ड नामा बृहत् काय टीका रची एवं प्राचार्य अनंतवीर्यने लघु काय टीका प्रमेय रत्नमाला रची, ये दोनों ग्रन्थ टीका ग्रन्थ हैं किन्तु मौलिकसे कम नहीं हैं । प्रमेय रत्नमालाका हिन्दी भाषानुवाद पंडित हीरालाल शास्त्री न्यायतीर्थ ने किया है, किन्तु प्रमेय कमल मार्तण्ड का अनुवाद अभी तक किसीने नहीं किया था, इस स्तुत्य कार्यको १०५ पूज्या विदुषी ग्रायिका जिनमति माताजी ने किया । यह ग्रन्थ आचार्य तथा न्यायतीर्थ जैसे उच्च कक्षाओं में पाठ्य ग्रन्थ रूपसे स्वीकृत है किन्तु हिन्दी टीकाके अभावमें क्लिष्ट पड़ता है । मैंने अपने विद्या एवं शिक्षा गुरु स्व. पंडित चैनसुखदासजी न्यायतीर्थसे कई बार निवेदन किया कि इस हिन्दी प्रधान युगमें इस महान ग्रन्थको पढ़ने और पढ़ानेवाले विरले रह जावेंगे, किन्तु यदि हिन्दी टीका हो जायगी तो इसकी उपयोगिताके साथ स्वाध्याय प्रेमियोंकी हृदय ग्राहिता भी बढ जायगी। किन्तु वे बहुत कुछ आश्वासनोंके साथही काल कवलित हो गये और उनके आश्वासन पूरे नहीं हो सके। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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