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पाठ ६ : सन्धि एवं समास प्रयोग
(क) सन्धि - प्रयोग
तत्थ जीवाजीवा सन्ति गराहिवो अत्थ वसइ मुणीस गंथं पढइ दिसो पातं उग्गइ महेसी भारणं करइ तत्थ कलाहिवई वसइ तस्सोवरि जोहा प्रत्थि इंदो जले गच्छइ गीलुप्पलं सरे प्रत्थि राईसरो सोहइ
तत्थ महूसवो होइ महूसवे को वि ण गच्छइ ता मुहं चन्दो व्व प्रत्थि तत्थ निसारो न वसइ किमिमं पोत्थ प्रत्थि
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१. जीवाजीव
२. मुणीसर ३. दिस
४.
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अभ्यास
(क) पाठ में से सन्धि वाले शब्दों को छांटकर निम्न प्रकार लिखिए :
सन्धिपद
सन्धिकार्य
अ + अ = आ
इ + ई = ई
वहाँ जीव - अजीव हैं । राजा यहाँ रहता है । मुनीश्वर ग्रन्थ पढ़ता है । सूर्य प्रातः उगता है ।
महर्षि ध्यान करता है ।
वहाँ कलाओं का स्वामी रहता है ।
उसके ऊपर चाँदनी है ।
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हाथी जल में जाता है । कमल सरोवर में है । चन्द्रमा शोभित होता है । वहाँ महोत्सव होता है । महोत्सव में कोई भी नहीं जाता है । उसका मुख चन्द्रमा की तरह है । वहाँ राक्षस नहीं रहता है । क्या यह पुस्तक है ?
विग्रह
जीव + अजीव
मुरिण + ईसर
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५.
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(ख) शेष संधिपद अपनी अभ्यास-पुस्तिका में इसी प्रकार
दिखाईए ।
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लिखकर शिक्षक को
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प्राकृत काव्य-मंजरी
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