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प्राकृत भाषा एवं साहित्य
[क] प्राकृत भाषा
भारत की प्राचीन भाषाओं में प्राकृत भाषा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भाषाविदों ने भारत-ईरानी भाषा के परिचय के अन्तर्गत भारतीय आर्य शाखा-परिवार का विवेचन किया है। प्राकृत इसी भाषा-परिवार की एक आर्य-भाषा है। भारतीय भाषाओं के विकासक्रम में भारत की प्रायः सभी भाषाओं के साथ किसी न किसी रूप में प्राकृत का सम्बन्ध बना हुआ
वैदिक भाषा प्राचीन आर्य-भाषा है। उसका विकास तत्कालीन लोक भाषाओं से हुआ है। प्राकृत एवं वैदिक भाषा में विद्वान् कई समानताएँ स्वीकार करते हैं । अतः ज्ञात होता है कि वैदिक भाषा और प्राकृत के विकसित होने में कोई एक समान धरातल रहा है। किसी जनभाषा के समान तत्त्वों पर ही इन दोनों भाषाओं का भवन निर्मित हुआ है। जन-भाषा से विकसित होने के कारण और जनसामान्य की भाषा बने रहने के कारण इसे प्राकृत भाषा कहा गया है ।
मातृभाषा:
प्राकृत की आदिम अवस्था का साहित्य या उसका बोलचाल वाला स्वरूप तो हमारे सामने नहीं है, किन्तु वह जन-जन तक पैठी हुई थी। 'महावोर, बुद्ध तथा उनके चारों ओर दूर-दूर तक के विशाल जन-समूह को मातृभाषा के रूप में प्राकृत उपलब्ध हुई। इसीलिए महावीर और बुद्ध ने जनता के सांस्कृतिक उत्थान के लिए प्राकृत भाषा का उपयोग अपने उपदेशों में किया। उन्होंने इसी प्राकृत भाषा के माध्यम से तत्कालीन समाज के
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प्राकृत काव्य-मंजरी
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