Book Title: Prakrit Kavya Manjari
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 178
________________ १४-१५. वह राजा हाथी के कन्धे पर स्थित इन्द्र की तरह उस कुमार को देखकर अपने परिजनों को पूछता है- 'गुणों का खजाना, तेज से सूर्य एवं सौम्यता से चन्द्रमा की तरह, सभी कलाओं की प्राप्ति में कुशल, बुद्धिमान, वीर एवं रूपवान यह बालक (राजकुमार) कौन है ?' (उसे मेरे पास लाओ) । ६१. मयूर को कौन चित्रित करता है और राजहंसों की गति को कौन बनाता है ? कौन कमलों की सुगन्ध को तथा अच्छे कुल में उत्पन्न व्यक्ति की विनय को (कौन बनाता है)? १७. गुच्छों के भार से धान्य के पौधे, पानी से मेघ, फलों के भार से वृक्षों के शिखर और विनय से सज्जन पुरुष झुक (नम्र) जाते हैं, किन्तु किसी के भय से नहीं झुकते हैं। 000 पाठ २३ : अहिंसा-क्षमा १. अहिंसा-संयम-तपरूप धर्म सर्वोच्च कल्याण (होता है) । किसका मन सदा धर्म में (लीन है? ), उस (ब्यक्ति) को देव भी नमस्कार करते हैं । २, जैसे जगत् में मेरुपर्वत से ऊँचा (कुछ) नहीं (हैं, ओर) आकाश से विस्तृत (भी कुछ) नहीं है, वैसे ही अहिंसा के समान (जगत् में श्रेष्ठ एवं व्यापक) धर्म नहीं है, (यह तुम) जानो। ३. सब ही जीव जीने की इच्छा करते हैं मरने की नहीं, इसलिए संयत व्यक्ति उस पीड़ादायक प्राणवध का परित्याग करते हैं। ४. जैसे तुम्हारे (अपने) लिए दुःख प्रिय नहीं है, इसी प्रकार (दूसरे) सब जीवों के लिए जानकर उचित रूप से सब (जीवों) से स्नेह करो (तथा) अपने से तुलना के द्वारा (उनके प्रति) सहानुभूति (रखो)। प्राकृत काव्य-मंजरी १६७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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