Book Title: Prakrit Kavya Manjari
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 183
________________ सौभाग्यशाली था ) । कुरूप (दुर्लभ दर्शन वाला) होते हुए भी ( वह) लोगों नयनों के लिए आनन्द उत्पन्न करने वाला था । १३ कुपति ( पृथ्वीपति) होते हुए भी ( वह राजा ) प्रियाओं दूसरों के सामने झुका हुआ ( नीति युक्त होता हुआ ) भी (परलोक से भयभीत ) भी वीर तथा शत्रुओं से डरा हुआ दान आदि में वीर ) था । १४. सूर्य (वीर) होते हुए भी सात अश्वों वाला ( भययुक्त) नहीं ( था ) । चन्द्रमा (कीर्ति युक्त) होते हुए भी नित्य कलंक से रहित ( था ) । सर्प ( भोगी) होते हुए भी दो जीभवाला (दुर्जन) नहीं ( था ) । ऊँचा ( स्वाभिमानी ) होते हुए भी समीप से (सेवकों को) फल देने वाला था । १५. जगत् में अपने तेज से संसार को आक्रान्त करने वाले एवं सुशोभित मंडलवाले चन्द्रमा की तरह जिस राजा की शत्रु लोगों के द्वारा पीठ ( कभी ) नहीं देखी गयी । लिए प्रिय था तथा ( वह ) साहसी था । रस से युक्त (धर्मं, १६. जिस राजा के बिना अच्छे कवियों की चिरकाल से सोची गयी काव्य- कल्पनाएँ दुखी -जनों के मनोरथों की तरह हृदय में ही स्थिर रहती हैं ( अर्थात् पूरी नहीं होती हैं) । पाठ २६ : जीवन-मूल्य १. वह मित्र बनाए जाने योग्य होता है, जो निश्चय ही ( किसी भी ) स्थान पर ( तथा किसी भी ) समय में विपत्ति पड़ने पर दीवाल पर चित्रित पुतले की तरह विमुख नहीं रहता है। १७२ * यह अनुवाद ' वज्जालग्गं में जीवन-मूल्य भाग १' डॉ० कमलचन्द सोगाणी की पुस्तक ( पाण्डुलिपि) से लिया गया है। उनकी यह पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य है । Jain Educationa International 000 For Personal and Private Use Only प्राकृत काव्य-मंजरी www.jainelibrary.org

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