Book Title: Prakrit Kavya Manjari
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 181
________________ जीत लिये गये । तब अत्यन्त क्रोधी (भरत) उस (बाहुबली) के वध के लिए ( उसके ऊपर) चक्र - रत्न को छोड़ता है । ११. जाकर ( बाहुबली को मारने में असमर्थ सुदर्शन ( चक्र भरत के पास ) वापस लौट गया । उसी क्षण बाहुबली को वैराग्य उत्पन्न हो गया । १२. (बाहुबली) कहता है- 'आश्चर्य है, ( दुष्प्रवृत्तियों) के वशीभूत पुरुष बिना अाज ( अनिष्ट) करते हैं । १३. ( जैसे व्यक्ति) राख के लिए चन्दन और डोरे के लिए मोती को नष्ट करते हैं, वैसे ही मानव-भोगों में मूढ मनुष्य (जीवन की ) श्रेष्ठ उपलब्धियों को (तुच्छ वस्तुओं के लिए) नाश करते हैं । ३. जो विषयों में लोभी (और) कषायों विरोध (वर) के भी एक दूसरे का पाठ २५ : कथा - वर्णन १. वे चिन्तनशील सज्जनरूपी सूर्य सदा उत्कर्ष को प्राप्त करते हैं, जिनके संसर्ग में अच्छे अक्षर-समूह वाले ( एवं ) दोष से रहित कथा - काव्य कमल-समूह की तरह विकसित होते हैं । दूसरा अर्थ : आकाश में विचरण करने वाले वे सूर्य सदा विजयी होते हैं, जिनके संसर्ग में अच्छे पत्तों के समूह वाले, रात्रि को न देखने वाले कमलवन विकसित होते हैं । २. वह विजयी हो, जिसके द्वारा सज्जनों की तरह दुर्जन भी इस लोक में बनाये गये हैं; (क्योंकि) अंधकार के बिना चन्द्रमा की किरणें भी गुणोत्कर्ष को नहीं पाती हैं। 000 १७० सज्जन की संगति से भी निश्चय ही दुर्जन की कालिमा (दुष्टता) दूर नहीं होती है । (क्योंकि) चन्द्रमण्डल के बीच में रहने वाला मृग भी काला ही ( है ) | Jain Educationa International For Personal and Private Use Only प्राकृत काव्य - मंजरी www.jainelibrary.org

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