Book Title: Prakrit Kavya Manjari
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 187
________________ होता है, जिस प्रकार कि दूसरे से सम्मानित किया जाता हुआ भी (सम्मान का) बदला चुकाने के लिए असमर्थ होने से (दुःखी होता है)। ११. सज्जन पुरुष आपत्ति में घबराहट-रहित, सम्पत्ति में गर्व-रहित, भय में धैर्यशाली (और) अनुकूल (तथा) प्रतिकूल (परिस्थितियों) में एक समान स्वभाव वाले होते हैं। १२. ईख और कुलीन व्यक्ति पीड़ित किये जाने पर (दबाने पर) भी रस (आनन्द) .. उत्पन्न करते हैं । (वे) जिह्वा में प्रिय (स्वाद, वचन) करते हैं (तथा) हृदय · में शान्ति (शीतलता) करने के लिए होते हैं। १३ शरद ऋतु में बड़े तालाबों के जल क्रोधित सज्जनों के हृदयों के समान बाहर से गरम और अन्दर से शीतल हो गये हैं। १४. (गर्मी से) संतप्त भैसा सांप को पहाड़ी झरना है, ऐसा (समझकर) जीभ से चांट रहा है (और) सांप भैंसे की लार को काले पत्थर का झरना है, ऐसा (समझता हुआ) पी रहा है। १५. हे पथिक ! देखो दोपहर में छाया भी धूप के भय से शरीर के नीचे छिपी हुई (है और) तनिक भी (बाहर) नहीं निकल रही है, तो (तुम भी) विश्राम क्यों नहीं कर लेते हो। १६. उतना ही प्रेम दो (करो), जितना मात्र निभाना संभव हो । सभी व्यक्ति प्रेम या कृपा (प्रसाद) के कम होने से (उत्पन्न) दुःख को सहन करने में समर्थ नहीं ००० प्राकृत काव्य-मंजरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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