Book Title: Prakrit Kavya Manjari
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 190
________________ २१. तो राजा कहता हैं- 'अरे क्या हाथी मर गया?' तब वे कहते हैं कि _ 'स्वामी, (आप) ऐसा कह रहे हैं, हम नहीं।' २२-२३. राजा ने कहा- 'अपने मीठे पानी के कुए को भिजवाओ।' (उन्होंने कहा) 'हे देव! आपके समक्ष हमारा कुआ अज्ञानी है। अत: आप अपने नगर के (चतुर) कुए को भेजें, जिससे हे स्वामी! जिज्ञासु (हमारा कुआ) उसके मार्ग के पीछे लगा हुआ (आपके पास) आ जायेगा।' २४. किसी अन्य समय में- 'यहाँ जो (गाँव के पश्चिम में) वन-खण्ड है उसे पश्चिम से पूर्व दिशा में कर देना चाहिये।' (राजा के द्वारा ऐसा कहे जाने पर) उस रोहत के द्वारा गाँव को उजाड़कर (वन के पश्चिम में वसाकर) वह भी कर दिया गया। २५. 'अग्नि एवं सूर्य के बिना भी खीर पकवाओ।' ऐसा क्षुद्र आदेश भेजे जाने पर (उस रोहत द्वारा) घूरे (को गर्मी) से खीर बनायी गयी । २६. 'यह सब कुछ किसके द्वारा किया गया।' ऐसा पूछने पर 'रोहत ने किया ऐसा उत्तर में कहे जाने पर प्रसन्न मनवाले राजा ने एक दिन बुलवाया (कि वह) मेरे पास आए। २७. उस समय से राजा को उस रोहत में बहुत पक्षपात (प्रेम) हो गया। और बुद्धिगुण के द्वारा सबके ऊपर (उसे) मन्त्री स्थापित कर दिया गया । 000 पाठ २६ : जीवन-व्यवहार १. ज्ञान का प्रकाश (ही सच्चा) प्रकाश (है । क्योंकि) ज्ञान के प्रकाश की (कोई) रुकावट नहीं है । सूरज थोड़े क्षेत्र को प्रकाशित करता है, (किन्तु) ज्ञान पूरे संसार को। प्राकृत काव्य-मंजरी १७९ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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