Book Title: Prakrit Kavya Manjari
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 185
________________ लाम ? सम्मान से जो तृण भी उपार्जित किया जाता हैं, वह सुख उत्पन्न करता है। ११. यदि हंस मसाण (मरघट) के मध्य में रहता है (और) कौआ कमल-समूह में रहता है, तो भी निश्चित ही हंस, हंस है और बेचारा कौआ, कौआ ही (है)। १२. जहाँ जय-लक्ष्मी रहती है, उस पुरुष की पूर्ण आदर से रक्षा करो। (क्योंकि) चन्द्र-बिंब के अस्त होने पर तारों द्वारा प्रकाश नहीं किया जाता है। १३. जिस तरह राजा के आँगन में स्थित हाथी की महिमा (होती है, किन्तु) विन्ध्य __पर्वत के शिखर पर (स्थित हाथी की महिमा) नहीं (होती है), उसी तरह (उचित) स्थानों पर गुण खिलते हैं। १४. जो पुरुष गुणहीन हैं, वे मूढ़ (ही) कुल के कारण गर्व धारण करते हैं । (ठीक ही है) बांस से उत्पन्न धनुष भी रस्सी (गुण) से रहित होने पर टंकार वाला नहीं (होता है)। १५. बहुत बड़े वृक्षों के बीच में सर्प-दोष के कारण चन्दन की शाखा काट दी जाती है, जैसे अपराध रहित भद्र पुरुष दुष्ट-संग के कारण (कष्ट दिया जाता है)। 000 पाठ २७ : गाथा-माधुरी १. वे सज्जन पुरुष विरले (दुर्लभ) हैं, जिनका स्नेह मुख की प्रसन्नता को नष्ट न करता हुआ (एवं) ऋण की तरह दिनों-दिन बढ़ता हुआ पुत्रों में संक्रान्त (प्राप्त) होता है। २. स्नेह प्रदान के द्वारा पोषण किया जाता हुआ (भी) दुष्ट व्यक्ति जहाँ पर ही रहता है उस ही (आधार) स्थान को शीघ्रता से मलिन कर देता है, जैसे तेल १७४ प्राकृत काव्य-मंजरी Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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