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२. स्नेह के लिए (इस जगत् में कुछ भी) अलंघनीय (कठिन) नहीं हैं; समुद्र पार
किया जाता है, प्रज्वलित अग्नि में (भी) प्रवेश किया जाता है (तथा मरण) (भी) दिया जाता है (स्वीकार किया जाता है)।
३. तीनों लोकों में केवल अकेले चन्द्र-प्रकाश के द्वारा स्नेह व्यक्त किया जाता है
(क्योंकि) जो (वह प्रकाश) क्षीण चन्द्रमा में क्षीण होता है (और) बढ़ते हुए (चन्द्रमा) में बढ़ता है।
४. किसी तरह किसी भी (स्नेही) के लिए किसी भी (स्नेही) के द्वारा देख लिये
जाने से परितोष (आनन्द) होता है। इसी प्रकार सूर्य से कमल-समूहों का (स्नेह के अतिरिक्त और) क्या प्रयोजन, जिससे (वे) खिलते हैं ?
५. कुल से शील (चरित्र) श्रेष्ठतर है; तथा रोग से निर्धनता (अधिक) अच्छी
है। राज्य से विद्या श्रेस्ठतर है; तथा अच्छे (श्रेष्ठ) तप से क्षमा श्रेष्ठतर है।
६. (उच्च) कुल से शील (चरित्र) उत्तम होता है, विनष्टशील के होने पर (उच्च)
कुल के द्वारा क्या लाभ होता है ? कमल कीचड़ में पैदा होते हैं, किन्तु मलिन
नहीं होते हैं। ७. जो (योग्य व्यक्ति की) इच्छा का अनुसरण करता है, (उसके) मर्म (गुप्त बात) , का रक्षण करता है, (उसके) गुणों को प्रकाशित करता है, वह न केवल मनुष्यों
का, (किन्तु) देवताओं का भी प्रिय होता है।
८. लवण के समान रस नहीं है, ज्ञान के समान बन्धु नहीं है, धर्म के समान निधि
नहीं है. और क्रोध के समान वैरी नहीं है ।
९.. कार्य तेजी से करो, प्रारम्भ किये गए कार्य को किसी तरह भी शिथिल मत करो
(क्योंकि) प्रारम्भ किये गए (तथा) फिर शिथिल किये गए कार्य सिद्ध (पूरे) नहीं होते हैं।
१०. खल-चरण में झुककर जो त्रिभुवन भी उपार्जित किया जाता है, उससे क्या
प्राकृत काव्य-मंजरी
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