Book Title: Prakrit Kavya Manjari
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 180
________________ पाठ २४ : अहिंसक बाहुबली १. तक्षशिला में हमेशा से राजा भरत का विरोधी महान् बाहुबली (था) । वह उसकी आज्ञा के अनुसार सदा (उसे) प्रणाम नहीं करता था। २-३. इसके बाद उसके ऊपर क्रोधी चक्रधर भरत) सम्पूर्ण साधनों से युक्त (तथा) समस्त सेना के साथ शीघ्र गति वाला (वह) नगर से निकला। 'जय' शब्द के उद्घोष की कलकल की आवाज (से युक्त) वह भरत तक्षशिला पुर को पहुँचा । (और) उसी क्षण युद्ध के लिए तैयार हो गया। ४. महान् बाहुबली भी आये हुए भरत राजा को सुनकर सुभटों के बड़े समूह के साथ तक्षशिला से निकला। ५. बल के घमण्ड से गर्वित (तथा) बजते हुए रणवाद्यों वाली दोनों सेनाओं का, नाचते हुए धड़ों से दर्शनीय भीषण मरण प्रारम्भ हुआ। ६. और (तब) बाहुबली के द्वारा भरत (को) कहा गया- 'लोगों के वध से क्या लाभ ? युद्धभूमि के बीच में (हम) दोनों का दृष्टि एवं मुष्टि द्वारा ही युद्ध हो जाय।' ७. तब इस प्रकार कहने मात्र पर (वे) दृष्टि-युद्ध लड़ने लगे। और चक्षु का प्रसार पहले भग्न करने वाला (पलक झपकाने वाला) भरत (बाहुबली के द्वारा) जीत लिया गया। ८-६. फिर अत्यन्त दर्प को धारण करने वाले, एक दूसरे की भुजाओं में गुथे हुए, चंचल पैरों की तीव्र गति से और हथेलियों को चतुराई से लड़ाने वाले, आधी (चमकी हुई) बिजली की जोत के बन्धन की तरह मारने के लिए उठे हुए हाथों के विपरीत दांव-पेंच को बनाने वाले, न टूटने (झुकने) वाले (वे दोनों) महापुरुष आमने-सामने होकर [मुष्टि] युद्ध करते हैं । १०. इस प्रकार (दूसरे) युद्ध में भी भुजाओं के बली (बाहुबली) द्वारा राजा भरत प्राकृत काव्य-मंजरी १६६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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