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पाठ १२ : शिक्षा-विवेक
१. उस प्रकार के सुन्दर, स्वस्थ निवासियों वाले किसी सन्निवेस (नगर) में सिद्ध
नामक किसी (व्यक्ति) के पिता के लिए प्रिय दो पुत्र (थे)। २. उस (पिता) के द्वारा उन्हें कुछ सूत्र पढ़ाये गये, किन्तु वह (पिता) विचार
करता है कि (यदि) ये कुछ निमित्त (शास्त्र) जान जाते हैं तो (कुछ) धन प्राप्त हो जाता।
३. तब पिता के द्वारा किसी नैमित्तकशास्त्र के जानकार को समर्पित कर दिये गए
(वे पुत्र) (उससे) सीखते हैं। किन्तु एक (पुत्र) के लिए (वह) शिक्षा अच्छी तरह प्राप्त होती है।
४. और दूसरे के लिए अविनय-भाव के कारण उस प्रकार नहीं (प्राप्त होती है) ।
इसके बाद किसी एक दिन वे (दोनों) जंगल में लकड़ी लेने के लिए भेजे गये।
५. मार्ग में जाते हुए उनके द्वारा हाथी के जैसे पैर देखे गये। एक ने (अबिनीत
शिष्य ) कहा-'हे भाई! देखो, यह हाथी गया है।'
६. दूसरे (विनीत शिष्य) ने कहा-'यह हथिनी है, (उसकी) शारीरिक-क्रिया से
जानी गयी है और (वह) कानी है, (क्योंकि) एक ही किनारे में चरने (पत्तियाँ खाने) से जानी गयी है।
७. और भी (उस हथिनी के) ऊपर सुन्दर स्त्री है।' यह कैसे जान गया ? 'बृक्षों
पर लाल धागों के लगने से यह ज्ञात हुआ है।' ८. उस (कथन) के विश्वास के लिए इच्छुक वे दोनों जब उसी मार्ग से जाते हैं
तब जैसा उन्होंने कहा था (वह) सब तालाब के किनारे (पहुँचने पर) देखा गया (सत्य प्रमाणित हो जाता है)।
९. इसी समय में छाया में विश्राम करते हुए उनके पास में सिर पर जल भरे हुए
घड़े को रखे हुए एक बृद्धा (बूढ़ी भौरत) आयी।
प्राकृत काव्य-मंजरी
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