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१२. उस वृतान्त को देखकर आनन्दित हुआ राजा सोचता हैं- 'यह (श्रेणिक) उदार
है और वीर है (तथा) मेरे अन्य राजकुमार कायर हैं ।' १३. किसी दूसरे अवसर पर राजकुमारों की बुद्धि की परीक्षा करने के लिए (राजा)
गिने हुए लड्डुओं की टोकरियों और पानी के कलशों को सीलबन्द करा देता हैं ।
१४. तब उन (राजकुमारों) को बुलवाकर कहता है- 'हे पुत्र! अपनी बुद्धि के वैभव
से सील तोड़कर लड्डुओं को खाओ और पानी को भी पिओ।' १५. ऐसा कहे गये अपनी बुद्धि के घमण्डी वे (राजकुमार) आय को न प्राप्त करते
हुए भूख-प्यास से सूखे शरीर वाले (होकर) दीनता को प्राप्त हुए ।
१६. किन्तु श्रेणिक कुमार के द्वारा कलशों से झरती हुई बूदों के जल को लेकर और
टोकरियों को हिलाकर (उनसे गिरी हुई) लड्डुओं की चूरी से भोजन कर लिया गया।
१७. श्रेणिक की बुद्धि के वैभव को इस प्रकार सुनकर आश्चर्य युक्त महाराजा सोचता है कि राज्याभिषेक के लिए यह (श्रेणिक) योग्य है ।
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पाठ १४ : सज्जन-स्वरूप
१. शुद्ध स्वभाव वाला सज्जन (व्यक्ति) दुर्जन व्यक्ति के द्वारा मलिन किया जाता
हुआ भी राख के द्वारा (मले जाते हुए) दर्पण की तरह और अधिक निर्मल (स्वच्छ) होता है।
यह सत्कार्य किया गया, जो ब्रह्मा के द्वारा संसार में सज्जन (लोग) बनाये गये। (क्योंकि वे सज्जन) दर्शन किये जाने पर दुख को हरण करते हैं (एवं)
बातचीत करते हुए (वे) सभी सुखों को प्रदान करते हैं । ३. न दूसरों पर हँसते हैं, न अपनी प्रशंसा करते हैं (और) सदा प्रिय बोलते हैं,
यह सज्जन लोगों का स्वभाव है । उन (सज्जन) पुरुषों को बार-बार नमस्कार ।
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प्राकृत काव्य-मंजरी
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