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कुछ पद्य में हैं। पद्य में लिखे गये प्राकृत के कथा-काव्य काव्यात्मिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं । पादलिप्तसूरि ने 'तरंगवतीकथा', जिनेश्वरसूरि ने “निर्वाणलीलावतोकथा', सोमप्रभसूरि ने 'कुमारपालप्रतिबोध', अाम्रदेव सूरि ने 'पाख्यानमणिकोशवृत्ति' तथा रत्नशेखरसूरि ने 'सिरिसिरिवालक हा' आदि कथा-काव्य लिखे हैं। ये कथा-काब्य ईसा की प्रथम शताब्दी से १५ वीं शताब्दी तक लिखे जाते रहे हैं। इन ग्रन्थों में कथातत्त्व एवं काव्यतत्त्व दोनों का समन्वय दृष्टिगोचर होता है ।
__ इस प्रकार प्राकृत काव्य-साहित्य की विभिन्न प्रवृत्तियाँ हैं । मुक्तक काव्य जीवन के विभिन्न अनुभवों से परिचित कराते हैं। खण्डकाव्य चरित नायकों के विशिष्ट जीवन का चित्र प्रस्तुत करते हैं । महाकाव्यों में जीवन के विभिन्न अनुभवों और वस्तुजगत् का काव्यात्मक वर्णन प्राप्त होता है । चरितकाव्य महापुरुषों के प्रेरणादायक चरितों की काव्यात्मक अनुभूति देते हैं । कथा-काव्य कल्पना और सौन्दर्य का समन्वित आनन्द प्रदान करते हैं । प्राकृत काव्य-साहित्य की ये सब विधाएँ भारतीय साहित्य के भण्डार को समृद्ध करतो हैं ।
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प्राकृत काव्य-मंजरी
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