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सशक्त माध्यम चुन ली गयी थी। महाकवि हाल ने अपनी गाथासप्तशती द्वारा प्राकृत को ग्रामीण जीवन और सौन्दर्य-चेतना की प्रतिनिधि भाषा बना दिया था।
प्राकृत भाषा के प्रति इस जनाकर्षण के कारण कालिदास आदि महाकवियों ने अपने नाटक ग्रन्थों में प्राकृत भाषा बोलने वाले पात्रों को प्रमुख स्थान दिया है। अभिज्ञानशाकुन्तलं की ऋषिकन्या शकुन्तला, नाटककार भास की राजकुमारी वासवदत्ता, शूद्रक की नगरवधू बसन्तसेना, भवभूति की महासती सीता, राजा के मित्र, कर्मचारी आदि प्रायः अधिकांश नाटक के पात्र प्राकृत भाषा का प्रयोग करते देखे जाते हैं । इससे स्पष्ट है कि प्राकृत जन-सामान्य की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित थी। वह लोगों के सामान्य जीवन को अभिव्यक्त करती थी। समाज के सभी वर्गों द्वारा स्वीकृत भाषा प्राकृत थी।
काव्य-भाषा :
लोक-भाषा प्राकृत को काव्य की भाषा बनने का भी सौभाग्य प्राप्त है । प्राकृत में जो आगम-ग्रन्थ, व्याख्या साहित्य, कथा एवं चरित-ग्रन्थ आदि लखे गये हैं, उनमें काव्यात्मक सौन्दर्य और मधुर रसात्मकता का समावेश है । इसे प्राकृत ने २३०० वर्षों के जीवनकाल में निरन्तर बनाये रखा है। भारतीय काव्य-शास्त्रियों ने भी सहजता और मधुरता के कारण प्राकृत की सैकड़ों गाथाओं को अपने ग्रन्थों में उद्धरण के रूप में सुरक्षित रखा है।
इस तरह प्राकृत ने देश की चिन्तनधारा, सदाचार और काव्य जगत् को निरन्तर अनुप्राणित किया है। अतः प्राकृत भारतीय संस्कृति की संवाहक भाषा है । प्राकृत ने अपने को किसी घेरे में कैद नहीं किया। इसके पास जो था उसे वह जन-जन तक बिखेरती रही, और जन समुदाय में जो
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प्राकृत काव्य-मंजरी
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