Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library

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Page 44
________________ समरारासु दामोदरु हरि पंचमड माल्हं० कालमेघो क्षेत्रपालु । सुणि० । सुवनरेहा नदी तहिं वहए माल्हं० तरुवरतण झमालु ॥ ५ ॥ पाज चडता धामियह मा० क्रमि क्रमि सुकृत विलसंति । सुणि० । ऊची य चडियए गिरिकडणि मा० नीची य गति षोडंति ॥ ६ ॥ पामिउ जादवरायभुवणु मा० त्रिनि प्रदक्षिण देइ । सिवदेवसुतु भेटि करिउ मा० ऊतरिया मढमाहि । सुणि० । कलस भरेविणु गयंद मए मा० नेमिहिं न्हवणु करेइ | पूज महाधज देउ करिउ मा० छत्र चमर मेल्हे ॥ ७ ॥ अंबाई अवलोयणसिहरे मा० सांबिपज्जूनि चडंति । सुणि० । सहसारामु मनोहरु ए मा० विहसिय सवि वणराइ । सुणि० । कोइलसादु सुहावणउ ए मा० निसुणियइ भमरझंकारु । सुणि० ॥८॥ नेमिकुमरतपोवनु ए मा० दुट्ठ जिय ठाउं न लहंति । सुणि० । इस तीरथि तिहुयणदुलभे मा० निसिदिनु दानु दियंति ॥ ९ ॥ समुदविजयरायकुलतिलय मा० वीनतडी अवधारि । सुणि० । आरतीमिसि भवियण भणई मा० चतुगतिफेरड वारि । सुणि० ॥ १०॥ जइ जगु एक मुहु जोइयए मा० त्रिपति न पामियइ तोइ । सुणि० । सामलधीर तरं सार करे मा० बलि वलि दरिसणु देजि । सुणि० ॥ ११ ॥ रलीयरेवयगिरि ऊतरिउ ए मा० समरडो पुरुषप्रधानु । घोड सीकर सांकलिय मा० राउल दियइ बहुमानु । सुणि० ॥ १२ ॥ दशमी भाषा - रितु अवतरियउ तहि जि वसंतो सुरहिकुसुमपरिमल पूरंतो समरह वाजिय विजयढक्क । सागुसेलसल्लहसच्छाया केसूयकुडयकयंवनिकाया संघसेनु गिरिमाहइ बहए । बालीय पूछई तरुवरनाम वाटइ आवई नव नव गाम नयनीझरणरमाउलई ॥ १ ॥ देवपणि देवालउ आवह संघह सरवो सरु पूरावइ तहिं आवइ सोमेसरछत्तो पान फूल कापड बहु दीजई लूणसमउं कपूरु गणीजह Jain Education International ३५ अपूरवपरि जहिं एक हुईअ । गउरवकारणि गरुड पहूतो आपण राणउ मूधराजो ॥ २ ॥ For Personal & Private Use Only बाधिहिं सिरु लिंपियए । www.jainelibrary.org

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