Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library

View full book text
Previous | Next

Page 165
________________ APPENDIX X पेथडरासः विणयवयणि वीनवउं देवि सामिणि वागेसरि हंसगमणि आकाशभमणि तिहूयणि परमेसरि । वीरजिणिंदह नमीय चलण चउविहुश्रीसंघिहिं कवडजक जकाधिराज समरीय मनरंगिहिं ॥१॥ कोडीयनयरनिवासिणी य वंडं अंबिकदेवि । शासनदेवति मनि धरीय गुरुचलण नमेवि ॥ २॥ रास रमेवउ जिणभुवणि तालमेल ठवि पाउ । संघतलायन रोपीउ ए सभगिरि विभगिरि बेवि ॥३॥ निसुणउ धामी एकमनि महीयलिमज्झि पहाण । जास बोध निरवमतिलउ पेथ अगंजीयमाण ॥ ४ ॥ षिण एक तस गुण संभलउ संघपति साहसधीर । अकलीअ कलि जिम छेतरीअ गरूउ गुहिर गंभीर ॥५॥ पोरूआडकुलिमंडणउ वईमाणकुलिलीह। चांडसीहकुलि अवतरीया पेथपमुह सुतसीह ॥ ६ ॥ जिम कंचण कसवट्टीयए पामिउ बहुगुणरेह । बंधवि पेथपरीषीयइ बहू कालि घरि एह ॥७॥ बइसीय पेथड पाटे बंधव बोलावइ नरसीहरतनह कारे मनि मंत्र चलावइ । मणूयजन्म अतिदुलह अनइ श्रावयजम्म जीव लहइ बहुपुण्य जगि जिणवरधम्म ॥ ८॥ धणकणरयणभंडार ते सवि अछह य असार। संचइ मोहनबंध ते सव्वि जाणे गमार ॥९॥ लाछितणउ जउ गरव करेई लीजइ राउल छल ह धरेई । मणूयजनम हवं सफल करीजइ जीविययौवनलाहउ लीजइ ॥१०॥ अथिरलाछि किम थिर ह करीजइ जिणह धंम तस ऊपम दीजइ । सेत्रुजि रिसहसामि वंदीजह विवि कारिहं प्रभु पूजीजइ ॥ ११ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172