Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library

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Page 168
________________ पेथडरासः २७ भेटीय झलु ताम पणवि पीयाणउं धामीयहं ॥ ३६ ॥ भडकूए आवास गोहिलसंडउ धरीय मनि । बहुगुणवंत सुजाण राण पहूतउ तेण खणि ॥ ३७॥ संघह दीन्ही धीर वलीय संघपति एकमनि । राणपुरे संपत्त संघ कनालइन रहइ ए॥ ३८ ॥ चलीय सरीस उषराण वसहसंड संघपति भणइए। मई मन मेल्हि निरास प्राण राणहूं मन हरेसो ॥ ३९ ॥ बइठउ संघपतिपासि रंजीय मलीयायत हरिसे । गुणगरूउ मुग्खराउ लोलीयाणपुरसई धणीय ॥ ४०॥ धरउ धर्मनउ ठाउ भवीय भावि तीणइ बह भणीय । दीन्ह पीयाणनीयाण उपरिं पीपलाइमणीय । चउरा दीन्ह विहाण डूंगरा देषीय मनि रुलीय ॥ ४१ ।। दीठउ डूंगर दृरिथियां चडीय सरोवरपाले । संघपति दई वधामणी हरिषीऊ ए हरिषीऊ ए हरिषीउ नयणि निहाले॥४२॥ कुंकुमि च्छडउ दिवारीउ ए तहिं पाथरीया पाट । चाउलि चउक पूरावीउ ए सपरिपरे सपरिपरे सपरि पढई बहुभह ॥४३॥ पढई भाट संघपति निसुणि पेथड पुण्यपवित्त चंडसीधरि अवतरीउ गुरुदेवे गुरुदेवे गुरुदेवे सुय सत्त। थापीउ डूंगर पण तिलउ फूलपगर ते चंग पाउल नाचई रंगभर गायंती ए गायंती ए गायंती मनह सरंग ॥ ४४ ॥ कापड कंचण दिन्ह तहिं बहुगुण पूरी आस । संघपति करह वधामणउं चलीऊ ए चलीऊ ए चलीउ पालीयताणइ वास॥४५॥ गंगाजल जिम निर्मल ललतासर सुपवित्त । सीधषेत्र तीरथतिलउ तिससयरे तिससयरे तिससयरे संपत्त ॥ ४६॥ मरुदेवि सामिणि पय नमीय संतिनाह सुरराउ । पालितसूरिप्रतिष्ठिउ ए सोलमू ए सोलमू ए सोलमउ जिणराउ ॥४७॥ डूंगरसिरि जे पाहरीय कवडिजक्खपडिहारो। संघ जि सांनिध सो करइ पहिलूं ए पहिलूं ए पहिलूं पास जुहारे ॥ ४८॥ अणुपम सर देषेवि तहिं पढूंता पालियारि । सरगारोहण दिट्ट तहिं अहिणव ए अहिणव ए अहिणव ईणं संसारे ॥ ४९ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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