Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library
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पेथडरासः
मिलि बंधवि कीयउ वयण प्रमाण एकचित्ति सवि समाण जाण । साते बंधवि की विचार सविहुं काजि लिउ नरसीअ भार ॥ १२ ॥ धम्मीय निसुण लोयमज्झि संघतणउ समाहउ भवीअणउ
आणूं दीजइ भत्तिजत्ति भवीया लहइ लाहउ धणकणउ । लसि रुलीय रंगि रास हवं नवरस नवरंग नवीयपरे
सुणि सामहणी संघतणी जो करई निरंतर घरेहिं घरे ॥ १३ ॥ जोइन देवालउं सामुहिउं तीहं माहि सुरेसर जिण ठवीय । देस साउर वरनयर तिहिं लेवि कंकोत्री पाठवीय ॥ १४ ॥ पाटण पइसीय सामति तहिं कर्णनरेसर भेटीय वीनवीउ । तीरथजात्र जायवरं देव तहिं देसवटउ सपसाउ कीउ ॥ १५ ॥ तहिं वेग लेउ पण आवीउ ए सयलसंघ तहिं हरसीय नीयमणि नयर पसाइरउ कीधउ तक्खणि तहिं नाचदं कुतिगकुतिगीयां । घरि घरि बइसी लोय मनावीय साजणसाहसरिस संम्हावी गामागर - पुरपाटणह ॥ १६ ॥
दूसमसमइ अहि जिम तिरीयु तारणतरंड रिसह मन घरी फल लीजइ जनमहतणउं ।
एकभावि नर जिगह धम्म परिरिहवरकलीय रमाउलीय ॥ १७ ॥ केवि कुतिग नर जोई निरंतर भलां भलेरां अतिहिं वहिला ऋषभवर । कामिणि धामिण धवल दियंती गायंती गुण जिणवरह | अतिऊमाहु जात्र समाहउ करीयल कंनि सुणंतीहं य ॥ १८ ॥ ते चउरा रूडा तडवां ताडी नवांनवेरां दीसई गेहणगण सघण | ते घणाघरा समविसमेरा संखि न दीसरं असंखि पुण ॥ १९ ॥ देवालइ बालीय नयणि विसालीय दितीय ताली रंगि फिरंती हरिसभरे । तहि नाचई खेला बहुयत वेला बाला भोला लउडा रसि रमई ॥ २० ॥ अतिरंगिं पूरी दिता भमरी नवपरि नवरंगइ तियसपरे । परममहोच्छव कीउ देवालइ फागुणपंचमि वीतसीयालइ प्रस्थानं कीयं पवरणि ॥ २१ ॥
संघपति सोहडदेउ वोनवोई तीरथजात्र जाइवउं गोसामीय । सेलहुत सीषामणह बहुय परघउ पणवि रहावीय । वह मल्ल ले पनि आवीय संघ देवालइन रोपीउ ए ।। २२ ।।
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