Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library

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Page 167
________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः संघपूज तिहां कीधउं अवारी भोयण सयल लोय सवि पूरीय महोच्छव कारवीय ॥ २३ ॥ लढण ॥ फागुणदसमि दिणंद चलीय संघ दहदिसितणउ । हसमस धसमस जोइ मिलीय लोक पण अतिवणउ ए ॥ २४ ॥ वहतमल्ल अगेवाण तुरीय ठाठ जोई पाषरीय । पुलेहिं पलाण जोइ इकि देवालइ फिरीय ॥२५॥ पहिलउं दीथी लागि जोइन देवालां संचरई ए। अखंड पीयाणे जाइ पहिलउं पीलूयाणइ रहीय ॥ २६ ॥ चलीय संघसंजुत्त पहुतउ वेगि डाभलनयरे । तीहं दीन्हा वास भास रास रुलीयामणां ए। देवालइ ऊछाहु चैत्रप्रवाडि सोहामणी ए ॥ २७ ॥ वडराउत वषाणि करणराउ मनि सलहीइ ए। देद दयापरजाम वील्हणवंस वषाणीइ ए ॥ २८ ॥ पहुतउ देवालइ तोइ हरसीय संघ प्रसंसीइ ए। पेथडसमउ न कोई मारगि मन तुम्हि बीहिसिउ ए ॥ २९ ।। दीन्ह पीयाणउं तोइ मयगलपरि तुम्हि संचरीय । वेगि पहूता तोइ नयरमाहि ते तरवरीय ॥ ३० ॥ आंगणि दीन्हा वास देवाला पावलि फिरीय । भविंया पणमउ पास जिणह भूयण रुलीयामणउं । कीधीय चैत्रप्रवाडि देवदेवांगणि पेषणउं ए ॥ ३१ ॥ संघह की वत्सल्ल धम्मी नागलपुरतणे ए। चलीय पीयाणइ जाम मारगि माग न जाणीइ ए ॥ ३२ ॥ सहू यालइ गीयं ताम संघपति पेथ वषाणीइ ए। नयणि निहालइ लोक पुण्यवंत धनवंत तहिं ॥ ३३ ॥ पूजीया जिणभूयणाइं भविया मणोरह चित्ति धरे । कीउं पीयाणउं भावि अखलीयछीतीयहारि तहिं ॥ ३४ ॥ पेथावाडइ जाइ भेटीय मंडणदेव तहिं । लाध मानप्रमाण सीकिरि आवई गुणपवरो ॥ ३५ ॥ भयु मनि करिवउ तुम्हि मारगि जाउ तम्हि । गिया ते जंबू जाम संघह पार न पामीय ए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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