Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library

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Page 120
________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र १११ पहुता, स्वयंवरि आव्या दीठा राय सवे गहगहता । राजा सोमदेवि साम्हई आवी महोत्सवि करी माहि लिया, भला ऊतारा दिया । तेतलई सूत्रहारे स्वयंवरमंडप नीपायु, पोयणिने पाने छायु । कर्पूर कस्तूरी महमहई, ऊपरि ध्वज लहलहई; चंद्रूआतणी विचित्राइ, पूतलीतणी काविलाई; थंभकुंभीतणा मनोहर घाट, पठइ भाट; रत्नमई तोरण नइ मोतीसरि, अलंकरिउ कुसुमतणे प्रकरि; वादिन वाजइं, मांगलिक्यगीत छाजई; आरीसा झलकई, चालतां स्त्रीना नेउर पलकइं । इसिइ मंडपि राययोग्य मांड्यां नामांकित सिंहासण, मागणहारनइं पगि पगि दीजइ वासण । तु राजासोमदेवदूत सांचरिया, ऊतारे फिरिया; राय सविहुं योग्य आकारण नीपजाव्या; मोटे आडंबरि समग्र नरेश्वर मंडपमाहि आव्या । जिस्या देवलोकसंबंधीया हुइं देव, तिस्या दीसइं सवि नरेश्वर सिंहासणि बइठा हेव । तिसिइ अवसरि राजा पृथ्वीचंद्र, जिसिउ साक्षात् हुइ इंद्र । इसिउ आवी स्वयंवरि सभामाहि बइठउ, सविहुं रायतणे मनि इसिउ शंकाभाव पइठउ । जं एउ सही कन्या वरिसिइ, अम्हारउं आविवउं किसिइ करिसिइ । राजातणइ मस्तकि छत्र, अनइ चमर ढलई पवित्र । राजा पृथ्वीचंद्र देषी सकललोक इसिउ विमासइं । जिम अक्षरमाहि ओंकार, मंत्रमाहि ह्रींकार, गंधर्वमाहि तुंबरु; वृक्षमाहि सुरतरु, सुगंधवस्तुमाहि कपूर, वस्त्रमाहि पाटणनउं चीर, वीरमाहि शूद्रकवीर, गढमांहि कालिंजरु, षाणिमाहि वइरागरु; द्वीपमाहि जंबूद्वीप, प्रदीपमाहि रत्नप्रदीप; पर्वतमाहि मेरुभूधर, जीवनहेतुमाहि जलधर; जिम हस्तीमाहि ऐरावण, मंडलेश्वरमाहि रावण; तुरंगममाहि उच्चैःश्रवा तुरंग, हरिणमाहि कस्तूरीउ कुरंग; धवलमाहि वृषभ, प्रशस्यदिशिमाहि उत्तरककुभ; अचलमाहि धूमंडल, क्षमावंतमाहि भूमंडल; जिम नागमाहि शेषनाग, रागमाहि श्रीराग; जिम ध्यानमाहि शुक्ल ध्यान, दानमाहि अभयदान; मंत्रीश्वरमाहि अभयकुमार प्रधान, पानमाहि नागरखंडउ पान; ज्ञानमाहि केवलज्ञान, विमानमाहि सवार्थसिद्धि विमान; गरूआमाहि गगन, पवित्रमाहि पवन, दर्शनमाहि जैनदर्शन; जिम देवमाहि इंद्र, ग्रहगणिमाहि चंद्र; तिसिउ सविडं रायमाहि दीसइ पृथ्वीचंद्र नरेंद्र। तिवारपूठिइं राजा सोमदेवि प्रतीहारपाहि कन्यारहइं तेडउ दिवराविउ, तउ सधव स्त्रीए धवलमंगलपूर्व कन्याहुइं मांगलिक स्लान कराविउं । अंगरूक्षण अनंतर कन्या सदश श्वेत कपड पहिरियां, आभरणे अंग उपांग अलं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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