Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library

View full book text
Previous | Next

Page 132
________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र १२३ हिव प्रभाति दासीमहिलीए राउ वधाविउ, स्वामी तम्हारे पुत्र आविउ । राजा वधामणी दीधी, नगरमाहि सर्व महोत्सवतणी पद्धति कीधी। अलंकरिउ प्राकार, शृंगारियां प्रतोलीद्वार । मंच अतिमंचतणी रचना हुई, स्वर्गपुरीतणी शोभा लई। ध्वजपताका लहकई, पुष्पपरिमल बहकई । नाचई पात्र, राजाभवनि आवइं अक्षतपात्र । सोमाई भणतां आवई छात्र, लोक अलंकरई आभरणि गात्र, उत्सव करिवा एहइ ज वात । तीणि वेलां न ऊऊई कोरण, बांधीयई तोरण; बांधीयइं वंदरवाल, उत्सव विशाल; गुलघीउ लाहीयई, मन ऊमाहीयइ । ईणि युक्ति जन्ममहोत्सव हुआ । नामगरणतणइ अवसरि माताहुई डोहलइ धर्म बुद्धि हुई। एहभणी धर्म इसिउं नाम दीधउं, परमेश्वरि रमलि करतां बालपणुं लीघउं, यौवनवयि राजकन्यातणउ पाणिग्रहण कीधउं । अढई लाष वरस कुमारपणउं पाली पंचासबरस राज्यलक्ष्मी पामी, पछइ विरक्तियुक्त हूउ स्वामी । नवविधलोकांतिकदेवतणी वीलतीलगइ सांवत्सरिकदान दीधउं, पछइ महोत्सव सहित चारित्र लीधउं। बि वरस छद्मस्थ काल अति क्रमी, केवललक्ष्मी पामी; विहारक्रम करई, भव्यलोक तारइं। हिव राजा पृथ्वीचंद्र अनइ सोमदेव उद्यानपालकरहइं साढाबारलाख सुवर्णदान देई समस्तपरिवारसाथिई लेई परमेश्वर नमस्करिवा सांचरिया, सकललोक ऊलटि धरिया। पृथ्वीरहइं अलंकरण, दीठउं स्वामीतणउं समोसरण । किसिउं ते । समग्र देव आवई, समोसरण नींपजावई । तां पहिलं वायुकुमारदेवतानिर्मित संवर्तक वायु विस्तरइं, ते तृण काष्ठ कचवर हरई, आकासि मेघपटल पसरई, गंधोदति वृष्टि करई, फूलपगर भरइं । गरूअउं रत्नमय पीठ बाधीं ऊपरि जानुप्रमाण पंचवर्ण कुसुम वरसई, चिहुं दिसि दिव्य परिमल विलसई। रत्नमय सुवर्णमय रूप्यनय त्रिन्नि प्रकार रूपि करी उदार, अनेक प्रकार; मणिरत्नसुवर्णमय कउसीसां सदाकार, च्यारि प्रतोलीद्वार । तिहां बिहु पासे उच्चैस्तर सुवर्णमय स्तंभ, ऊपरि मणिमय कुंभ; इंद्रधनुषमानमूरण, रत्नमय लोरण; प्रत्यक्ष जिसी मांगलिक्यनी पालि, इसी चंदवालि । अनेकि विचित्र, विशाल छत्र; उदारस्वरूप, कनकमय पूतलीतणां रूप; जेहे लिषित सिंह शार्दूल गज, इस्यां निर्मल नीरज, पंचवर्ण ध्वज । इस्या समोसरणविचालि, मणिबद्धपीठि विशालि; सकलमांगलिक्यमुख्य, गरूउ अशोकवृक्ष; जिसिउ प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष, इसिउ बारगुण चैत्यवृक्ष । तेहतणी छायां रत्नमय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172