Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library

View full book text
Previous | Next

Page 141
________________ १३२ प्राचीनगूर्जरकाव्य सङ्ग्रहः संजमसिरभासुरह दुसहवयदाढकरालह | नाणनयणदारुणह नियमनि सनहर समिडह | कम्मको रिह विमलपुच्छप सिद्धह । उपसमणउपरधरदुव्विसह गुणगुंजारवजीहह | जिणदत्तसूरि अणुसरह पय पापकरडिघडसीहह ॥ ६ ॥ जरजलबहलरउद्द लोहलहरिहिं गजंतर । मोहमच्छउच्छलिउ कोवकल्लोल वत । मयमयरिहि परिवरिउ पंचबहुवेल दुसंचरु | गंधगरुयगंभीरु असुहआवत्तभयंकरु । संसारसमुह जु एरिसउ जसु पुणु पिक्खिवि सुदरियइ । जिणदत्तसूरिउवएस सुणित परतरंडइ सुतरियइ ॥ ७ ॥ सावय किवि कोयलिय केवि खरहरिय पसिडिय । ठाइ ठाइ लक्खियहि मूढ नियवित्तिविरुद्धिय । दरहि न किंपि परत बेवि सुपरूप्पर जुज्झहि । सुगुरु कुगुरु मणि मुणिवि न किवि पहंत बुज्झहि । जिणदत्तनूरि जिन नमहि पयपउम सच्चु नियमणि वहहि । संसारउयहि दुत्तरि पडिय जि न हु तरंडइ चडि तरहि ॥ ८ ॥ तवसंजमसयनियमि धम्मकम्मिण वावरियउ । लोहकोहमयमोह तह व सप्पिहि परिहरियड । विसमछेदलक्खणिण सत्थअत्थत्थविसालह । जिणवल्लहगुरुभत्तिवंतु पयड कलिकालह | अन्निहिवि गुणिहि संपन्नतणु दीणदुहियउंडरणु धर । जिणदत्तसूरि पर पल्ह भणु तत्तवंत सलहियइ घर ॥ ९ ॥ वक्खाणियइ परमतत्तु जिण पाउ पणासह | आराहियइ त वीरनाह कइपल्हु पयासह | धम्मु त दयसंजुत्तु जेण वरगइ पाविज्जइ । चाउ त अणखंडियउ जु बंदिण सलहिजइ । जइ ठाइ त उत्तिममुणिवरह पवरवसहिहो चउर नर । तिम सुगुरुसिरोमणि सूरिवर खरतरसिरिजिणदत्त वर ॥ १० ॥ इति श्रीपट्टावलीषट्पदानि । संवत् ११७० वर्षे अश्वयुगाद्यपक्षे ११ तिथौ श्रीमद्धारानगय श्रीखरतरगच्छे विधिमार्गप्रका शिवसतिवासिश्रीजिणदत्तसूरीणां शिष्येण जिनरक्षितसाधुना लिखितानि । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172