Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library
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११८
प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः
कीधी । कुण हुई घोड, कुण हुई हाथिउ; कुण हुई आभरण, कुण हुई पटकूल । ईणिपरि भक्ति कीधी । राय सवे आपणे आपणे नगरि पहुता । राजा पृथ्वीचंद्रहुई सोमदेवनरेश्वरतणइ आवासि नितु नवनवे गौरवि शिवमय सुखमय दिवस अतिक्रमई |
अन्यदा प्रस्तावि राजापृथ्वीचंद्र अनइ राजासोमदेव राजसभां एकठा बइठा । किसी ते राजसभा । जीणि सभा पात्र नाचई, विद्वांस बइठा पुस्तक वांच; माल मल्लविद्या मांडिवा माचई, रागज्ञ रायहुई रंग रहाविवा राचई; सुहाबोला शुभ बोली स्वामीकन्हे पसाउ याचई, कूडा झागडू चिरकाल विवाद करी स्वयमेव पाचइ । इसी सभा, बिहुं नरेश्वरि करि वली वाधी प्रभा । तिसिइ अवसरि हर्षप्रसरि पहुतउ वनपाल, तीणि वीनविड श्रीसोमदेव भूपाल | स्वामिन् आपणइ उद्यानवनि श्रीधर्मनाथ तीर्थंकरदेव पाउ धारिया, जीणि परमेश्वरि त्रिभुवन आनंद वधारिया । हिव अवसार आविडं, श्रीधर्मनाथतणउं कहिवउं, चरित्र, महापवित्र । ईणि भरतक्षेत्रि प्रवरगुणि करी मनोहर, रत्नपुर नामिई नगर । तिहां ऐश्वर्यनिर्जितसुरेश्वर भानुनामा नरेश्वर । तेहतण पट्टराणी, सुव्रता इसिई नाभिई जाणी । अन्यदा प्रस्तावि तीणि राज्ञी आपण आवासि, मनतणइ उल्हासि, पल्यांक पउढी हुंती विपहर रात्रिसमई निद्राभरि वर्त्तमान हूंतीई चऊद महास्वप्न दीठां । किस्यां ते महास्वन । गज १ वृषभ २ सिंह ३ लक्ष्मी ४ पुष्पमाला ५ चंद्र ६ सूर्य ७ ध्वज ८ पूर्णकलस ९ सरोवर १० समुद्र ११ विमान १२ रत्नराशि १३ निर्धूम वैश्वानर १४ । इह चतुदशमहास्वनतणउं सांभलउं जूजूडं वर्णन व्यतिकर । राणी प्रथम दीठउ गजेंद्र । किसिउ गजेंद्र । चतुर्दत, विनयवंत, सप्तांगप्रतिष्ठित, गजेंद्रगुणि अधिष्ठित; विशालकुंभस्थल, विलोलकर्णाचल; उद्दंडशुंडादंड, तेजि करी प्रचंड, मदजलवासित कपोलमूल, भ्रमरकुल अनुकूल; परित्यक्तसकलदोष, उत्पादितसकलजननयनसंतोष, प्रधान, ऐरावणगजसमान; महाकाय, पर्वतप्राय; भद्रजातीय, अद्वितीय; जेहतणी गति प्रशस्ती, एवंविध दीठउ हस्ती १ । तर दीठउ वृषभ । किसिउ ते वृषभ । निर्जलधाराधरधवल, विकसित काशकुसुमसमुज्ज्वल, विशालककुद, चंदकिरणतणीपरि विशद; सूक्ष्मसुकुमाल रोमराजिविराजमान, स्निग्धकांतिदेदीप्यमान, अभंगश्यामलशृंग, सुंदरसमस्त अंगोपांग; विशुदंत, पंक्तिशोभित; प्रमुखप्रदेश, चारुचरणसंनिवेश; प्रसन्नवदन, दुग्धधौ
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