Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library

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Page 93
________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः अहर पवाल तिरेह कंठुराजलसर रूडउ जाणु वीणु रणरणइं जाणु कोइलटहकडलउ ॥९॥ सरलतरल भुयवल्लरिय सिहण पीणघणतुंग । उददेसि लंकाउली य सोहइ तिवलतुरंगु ॥ १० ॥ अह कोमल विमल नियंबबिंब किरि गंगापुलिणा करिकर ऊरि हरिण जंघ पल्लव करचरणा। मलपति चालति वेलहीय हंसला हरावह संझारागु अकालि बालु नहकिरणि करावइ ॥ ११ ॥ सहजिहिं लडहीय रायमए सुलखण सुकमाला घण घणेरडं गहगहए नवजुव्वण बाला। भंभरभोली नेमिजिणवीवाह सुणेई नेहगहिल्ली गोरडी हियडइ विहसेई ॥ १२ ॥ सावणसुकिलछट्टि दिणि बावीसमउ जिणंदो चल्लइ राजलपरिणयण कामिणिनयणाणंदो ॥ १३ ॥ अह सेयतुंगतरलतुरइ रइरहि चडइ कुमारो कन्निहि कुंडल सीसि मउड गलि नवसरहारो। चंदणि ऊगटि चंद्धवलकापडि सिणगारो केवडियालउ खुंपु भरवि वंकुडउ अतिफारो ॥ १४ ॥ धरहि छत्तु वित्तु चमर चालहिं मृगनयणी लूणु उत्तारिहिं वरबहिणी हरिसुज्जलवयणी । चहुपरि बइसइ दुसारकोडि जावभूपाला हयगयरहपायकचक्कसीकिरिहिं झमाला ॥ १५॥ मंगल गायहिं गोरडीय भह जयजयकारो उग्गसेणघरनारि वरो पहुतउ नेमिकुमारो ॥ १६ ॥ अह सहिय पयंपय हल सहि ए तुह वल्लहउ आवइ मालिअटालिहिं चडिउ लोउ मण नयणु सुहावइ । गउखि बइठी रायमए नेमिनाहु निरखइ पसइपमाणिहिं चंचलिहिं लोअणिहिं कडखई ॥१७॥ किम किम राजलदेवितणउ सिणगारु भणेवउ । चंपइगोरी अइधोइ अंगि चंदनुलेवउ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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