Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library
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१०३
पृथ्वीचन्द्रचरित्र पाऊ सांप सींगी मदन काहल भेरी धुंकार तरवरा । ईणिपरि मृदंगपटुपडहप्रमुष वादिन वाज्यां, दुःख दूरि ताज्यां । इकवीस मूर्छना इगुणपंचास तान, इस्यां हुई गीत गान; याचक योग्य प्रधान वस्त्रदान । किस्यां ते वस्त्र । सथिला संग्रामां दाडिमां मेघवनां पांडुरां जादरा कालां पीयलां पालेवीयां ताकसीनीयां कपूरीयां कस्तूरीयां फूडीयां चउकडीयां सलवलीयां ललवलीयां हंसवडि गजवडि उडसाला नर्म पीठ अटाण कताण झूना झामरतली भइरव सुद्धभइरव नलीबद्धप्रमुख वस्त्र जाणिवां । ईणिपरि महोत्सवभरि, साथि कुमरि, नरेश्वर पहुता नगरि । मनतणइ उल्लासि, आव्या आवासि । रायरहइ कुमरीतणउं स्वरूप विमासतां ऊपनी आकाशवाणी, ए वार्ता कहिस्यई केवलनाणी । राजा तां आश्चर्य धरतई हुंतइ प्रधान तेडाविउ, तिहां आविउ । ते प्रणाम करी बइठउ तउ राजां बोलाविउ । हे मंत्रीश्वर विचारि, पाणिग्रहणयोग्य हुई रत्नमंजरी कुमारि । तु मंडावीयइ स्वयंवर, मेलीयइं सवे नरेश्वर, कन्या आपणी इच्छा वरइ वर । इसिउ आलोच कीघउ, तु राजा सविहुं दूतरहइं आदेश दीधउ; जु को पृथ्वीपीठि राय नइ राणउ, तम्हे जाणउ, ते समग्र ईणि स्थानकि आणउ । तिवारपूठिइं स्वयंवरमंडप सूत्रधारपाहिं कराविवा मंडाविउ, हुं तुम्हकन्हइ आविउ । हिव तुम्हे तिहां पाउ धारउ, ए वीनती अवधारउ, राजासोमदेवतणइ मनि आनंद वधारउ । ___इसी वार्ता सांभली दूतहुई बहुमान देतु कटक लेइ राजा पृथ्वीचंद्र स्वयंवरभणी चालिउ, कटकभारि पातालि शेष नाग हालिउ । हाथीया घोडा, नहीं थोडा।किस्या ते हाथीया छइ। सिंहलद्वीपतणा, जाजनगरतणा, भद्रजातीक, उल्ललितसुंडादंड, प्रचंड, पर्वतसमान, जलधरवान, चपलकान, मदजल झरता, आलि करता, अतुलबल, उच्छृखल, गलगर्जित करता गजेंद्र सांचरियां, तरलतेजी तरवरिया। किस्या ते । हयाणा भयाणा कुंकणा कास्मीरा हयठाणा पइठाणा सरसईया सींधउरा केकाइला जाइला उत्तरपंथा पाणीपंथा ताजा तेजी तोरका काच्छूला कांबोजा भाडेजा आरह वाल्हीकज गांधार चांपेय तैतिल त्रैगर्त्त आर्जनेय कांदरेय दरद सौवीर क्षेत्रशुद्ध प्रमाणशुद्ध चपल सरल तरल उंचासणा परीछणा । जोयउं सहइं, बपूकारिया रहई; वांकी द्रेठी, सभर पूठि; छोटे काने, सूधइ वानि; सइरनी ललवलाई, नीछटनी कलाई, पूंछतणी आयताई; पलाणतणी सामंत्राई; वांकी तुंडवालि, बहुली पेटवालि, मुहि रूधा,
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