Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library
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पृथ्वीचन्द्रचरित्र ( वाग्विलास)
या विश्वकल्पवल्लीवल्लीलया कल्पितप्रदा । प्रदत्तां वाग्विलासं मे सा नित्यं जैनभारती ॥१॥ धर्मश्चिन्तामणिः श्रेष्ठो धर्मः कल्पद्रुमः परः।
धर्मः कामदुधा धेनुर्द्धर्मः सर्वफलप्रदः ॥२॥ पुण्यलगइ पृथ्वीपीठि प्रसिद्धि , पुण्यलगइ मनवांछितसिद्धि; पुण्यलगइ निर्मलबुद्धि, पुण्यलगइ घरि ऋद्धिवृद्धि; पुण्यलगइ शरीर नीरोग, पुण्यलगइ अभंगुरभोग; पुण्यलगइ कुटुंबपरिवारतणा संयोग, पुण्यलगइ पलाणीयइंतुरंग, पुण्यलगइ नवनवा रंग; पुण्यलगइ घरि गजघटा, चालतां दीजई चंदनछटा, पुण्यलगइ निरुपम रूप, अलक्ष्य स्वरूप; पुण्यलगइ वसिवा प्रधान आवास, तुरंगमतणी लास, पूजई मन चीतवी आस; पुण्यलगइ आनंदायिनी मूर्ति, अद्भुत स्फूर्तिः पुण्यलगइ भला आहार, अद्भुत शृंगार; पुण्यलगइ सर्वत्र बहुमान, घj किस्युं कहीयइ पामीयइ केवलज्ञान। . एह पुण्यऊपरि राजाधिराज पृथ्वीचंद्रतणउ कथासंबंध भणीयइ । ता ईणई राजुप्रमाणि रत्नप्रभापृथ्वीपीठि असंख्याता द्वीप समुद्र वर्तइं । तीह माहि पहिलउ जंबूद्वीप लक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ । तेह पालि लवणसमुद्र दिलक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ।तेहपरइं धातकीखंडदीप च्यारिलक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ । तेह पालि कालोदधि समुद्र आठलक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ । तेह परइं पुष्करवरदीप सोललक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ । तेह पापलि पुष्करवरसमुद्र बत्रीसलक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ । आगलि वारुणिद्वीप ६४ लक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ । तेह पालि वारुणीसमुद्र एककोडि २८ लक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ । ईणिपरि ठाण बिमणा द्वीप समुद्र जाणिवउ । कवण कवण क्षीरद्वीप क्षीरसमुद्र घृतद्वीप घृतसमुद्र इक्षुद्वीप इक्षुसमुद्र नंदीसररद्वीप नंदीसरसमुद्र अरुणद्वीप अरुणसमुद्र अरुणवरद्वीप अरुणवरसमुद्र अरुणवरावभासद्वीप अरुणवरावभाससमुद्र इत्यादिक द्वीपसमुद्र असंख्यात । तेहमाहि पहिलु जे जंबूद्वीप, तेहनी नाभिई मेरुपर्वत जिसिउ प्रदीप, तेहनुं दक्षिण उत्तरई सातक्षेत्र चऊद महानदी छ वर्षधर पर्वत वर्तई ।
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