Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library
View full book text
________________
९६
प्राचीनगूजर काव्यसङ्ग्रहः
जिहां छात्र पढई चउसाल, तिसी नेसाल; जिहां अध्यात्मतणी वात दृढ, तिसां अनेक मढ; जिहां लोक जिमई अपार, तिसा सनूकार; जिहां पाणी पियइ सर्व, तिसी पर्व; जिहां रमलि कीजई स्वभावि, तिसी वावि; जिहां आनंद हुआ, तिसा कुआ; पद्मवनखंडमंडित प्रवर, महाकाय सरोवर; जिहां रंगि कीजई रयवाडी, तिसी वाडी; जिहां सीतल फुरकइ पवन, तिसां पावलियां वन; इसुं अन्यायरहई दाटण, पृथ्वीपीठि प्रसिद्ध पुहिठाणपुर पाटण ।
I
तीणि पाटणि राजाधिराज पृथ्वीचंद्र इसिई नामिदं राज्य प्रतिपालइ, भुजबलकरी वइरी वर्ग टालई । जीणि राजा गौडदेशनउ राउ गांजिउ, भोटनउ भांजिउ; पंचालनउ राउ पालउ पुलई, कानडादेसनउ कोठारि रुलई, ढोरसमुद्र ढोयणां ढोयइ, बाबरउ बारि बइठउ टगमग जोयह; चौडनउ दंडि चांप, कास्मीर कांपिउ; सोरठीयउ सेवइ, तुडि न करई देवई; अंगदेसन अंगि ओलाइ, जालंधरनउ जीवितव्यकारणि रिगइ; घणुं किस्युं कहीयह, रिपुकुलकालकेतु शरणागतवज्रपंजर पंचम लोकपाल । जीणं रिपु सर्वे निट्यां दुर्ग सर्वे आपणा कीधा, वयरीनई देसवटा दीधा । इसिउं निःकंटक साम्राज्य प्रतिपालइ । तेह नरेश्वरनई बुद्धिनिधान, परमहंसनामि प्रधान; जेउ सहिजिइं रूपिडं रूडउ, पाटरहिं नहीं कूडउ; राउलउ अर्थ सारइं, लोक ऊगारइ, वयर विग्रह वारइ; पालइ दीन दुस्थित निराधार, करइ साधुजन उपगार; शस्त्रि शास्त्र कुशल अपार, गुहिर गंभीर, अतिहिं धीर; मुहि मीठउं भाषई, काज कीधां जि दाह; चिहुं बुद्धितणडं निधान, सविहुं अमात्यमाहि मूलिगु प्रधान; रायत प्रतिशरीर, इसिउं ते मंत्रीश्वर; नरेश्वररहई, शिवमय सुषमय कल्याणमय दिवस अतिक्रमई ।
अन्यदा प्रस्तावि राजा रातितणई प्रस्तावि स्वप्न एक दीठउ, जेहन फल छइ अत्यंत मीठउं । किसउं ते स्वप्न । इसिउं जाणइ नरेश्वर सुवर्णवर्णकांति, देवरहई मन भ्रांति; पलकते नेउरि झलकते कुंडलि हाथि वरमाल, अर्द्धचंद्रसमभाल; रूपि विशाल, इसी बालदेवी देषइ भूपाल । जेतलइ तेहतणी वरमाला कंठिकंलि लागी, तेतलई रायनई निद्रा भागी; जागिउ नरेश्वर चींवर अलवेसर । किसिउ स्वप्नतणउ घटइ विचार, तेतलइ प्रभातावसरिउ मांगलिकशंख तणउ ओंकार हुआ तिवलितणा दोंकार, मृदंगतणा धकार; भट्टतणा मांगलिक्यध्वनि, राजा आनंदिउ मनि; शुभहेतु स्वप्नतणउ मनि विचार धरी, पालंक परिहरी; क्षणु एक राजा मल्लाषाडइ आव्या । मल्ल
"
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/c41b8f1ec3bbd0c8071ad6decaa7eae6cc6913e64b7b033ab769f7c8ebc3998e.jpg)
Page Navigation
1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172