Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 14
________________ भूमिका शा _ 'श्रावक' माने क्या ? आकाश को कौन माप सकता है? . उसकी पहचान कौन कर सकता है? शायद यह सब सम्भव हो सकता है, परन्तु विरल विभूतियों की आकाश से भी अदकेरी बातें कितनी अमापहोती हैं ? श्री उपासकदशांगसूत्र के माध्यम से हम आकाश की पहचान करने जा रहे हैं। . सातवें अंगसूत्र में श्रावकों को प्रभुशासन में उपासक के रूप में श्रेष्ठ . बिरुद प्रदान किया गया है। श्रावक श्रमणों का उपासक है। . .श्रमणों की बाह्य व आन्तरिक उपासना में वह अपना श्रेय समझता है। श्रावक श्रमणत्वका उम्मीदवार है। श्रमणत्व प्राप्त करने योग्य है, ऐसा जिसे नहीं लगे, वह सच्चे अर्थों में श्रमणों का उपासक कैसे बन सकता है? श्रद्धा, विवेक और क्रिया के सूचक श्रावक शब्द के तीन अक्षर हैं। जो श्रावक प्रभुवचन के प्रति श्रद्धालु है। हृदय से विवेकी है। आचार से समृद्ध है, यह सूचित करता है। इस सूत्र में श्री वीरविभु के एक लाख उनसठ हजार श्रावकों में से दस महाश्रावकों के जीवन का वर्णन किया गया है। श्रीसुधर्मास्वामीजी और श्री जम्बूस्वामीजी के बीच गुरु-शिष्य के संवादरूप में उपलब्धइस शास्त्र के अध्ययन-श्रवण से आदर्श श्रावक की आदर्श आचार-संहिता का बोधप्राप्त होता है। आदर्श जीवन कथा - इन दसों महानुभावों ने जन्म से ही जैनत्व को प्राप्त नहीं किया था। प्रभुवीर के दश श्रावक...

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