Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 68
________________ देव प्रगट होकर कहता है कि : "देवानुप्रिय ! कल प्रातःकाल यहाँ महान, ज्ञानदर्शनधारक, त्रिकालवेदी, अरहा जिन-केवली, सर्वज्ञ-सर्वदर्शी, तीनों लोकों के द्वारा पूजित, देव-दानव और मानव के द्वारा सेवित प्रभु पधारेंगे।तुम उनकी सेवा-पर्युपासना आदि करना !" वह समजा अवश्य ही मेरे धर्माचार्य महान श्री गोशालक का पदार्पण होगा। दूसरे दिन स्वयं प्रभु महावीर पधारे ।सहस्राम्रवन में समवसरे हुए प्रभु को वन्दन करने राजा व प्रजा की भांति सकडालपुत्र भी गया था।वन्दनादि किया। प्रभु ने देशना दी। सकडालपुत्र को कल की घटना के सम्बन्धमें प्रभु ने स्वयं पूछा : "महानुभाव ! क्या कल अशोकवनिका में उपासना करते समय किसी देव ने आपको सन्देश दिया था ? इसीलिए तू यहाँ आया ?" साथ-साथ प्रभु ने स्पष्ट करते हुए कहा कि "तू जो मानता था।वह बात गोशालक के लिए नहीं थी।" . प्रभु के अचिन्त्य प्रभाव से प्रभावित होकर उसने प्रभु को अपनी कर्मशाला में पधारने और पाटला आदि का लाभ लेने का निवेदन किया। . __प्रभु ने उसके निवेदन को स्वीकार किया और वहाँ पधारा। .. प्रभु का प्रश्न और प्रतिबोध कुम्भकार शाला में चल रही बर्तन निर्माण की प्रवृत्ति के सम्बन्धमें पूछकर प्रभु ने कहा : 'सकडालपुत्र ! ये बर्तन प्रयत्न से बनते हैं या नियत है।' वह कहता है, 'प्रभो ! सारे भाव नियत हैं, जो होना होता है, वही होता है।' प्रभु ने कहा, 'यदि कोई व्यक्ति इन्हें तोड़-फोड़ करेगा या नष्ट करेगा तो तू क्या करेगा? और यदि कोई तेरी भार्या अग्निमित्रा के साथ अनाचार करेगा तो तू क्या करेगा?' आवेश में आकर उसने कहा, 'मैं उसे दण्डित करूँगा, मार भी डालूंगा।' प्रभु ने कहा, 'तेरी मान्यता के अनुसार तो जो होना था, वही हुआ ना ? अब यदि तू मार-पीट करे या उसकेप्राणले तो यहतो प्रयत्न ही कहलाएगा ना?' यह सुनकर तत्त्वज्ञता और विचारकता के कारण उसे गोशाक मत की पोल समझ में आ गई। . उसने प्रतिबोधप्राप्त किया । प्रभु के पास आर्हत् धर्म का स्वरूप सुना, समझा, उसे धर्म के प्रति श्रद्धा हुई। इतना ही नहीं, वह व्रतधारी श्रावक बना। प्रभुवीर के दश श्रावक.

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