Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 76
________________ के द्वारा तथा अन्य छः को विषप्रयोग कर परलोक भेज देती है । दम्भपूर्वक सफाई से उसके मायके की सारी सम्पत्ति भी हड़पलेती है।और अब शान्तिपूर्वक महाशतककेसाथ भोग-विलास करती हुई समय व्यतीत करती है। .. उत्तम महानुभावों के घर में भी कैसी दुष्ट मनोवृत्तिवाले जीव हो सकते हैं? उसकी अति अयोग्यता ही इसका कारण है। ऐसे उत्तम साधक का जीवन भी उसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं डाल पाती । उत्तम संसर्ग और उत्तम वातावरण का प्रभाव भी उन्हीं जीवों पर पड़ता है, जिनका भावी अच्छा होनेवाला होता है। मनोवृत्ति की अतिदुष्टता में रेवती का दृष्टान्त अद्वितीय है। गौर करने योग्य बात तो यह है कि उसकी दुष्ट मनोवृत्ति भी महाशतक के ऊपर कोई प्रभाव नहीं डाल पाती है। और यह उन महानुभाव की महानता का ही परिणाम है। उपेक्षा भावना .. जीवों की पात्रता और अपात्रता के अनुसार संसर्ग का भी परिणाम देखा जाता है । महाशतक की पत्नी रेवती मांस-मदिरा में आसक्त रहती है। लगता है कि गम्भीर साधक अयोग्य वस्तु के लिए व्यक्तिगत रूप से कुछ भी कहने में अभिरुचि नहीं दिखलाते हैं, इसीलिए उन्होंने उपेक्षा भावना से युक्त रहना ही उचित समझा होगा।एक दिन भी नहीं चलाई जा सके, ऐसी प्रवृत्ति को सहन करना पड़ता होगा। उसकी कैसी वेदना महाशतक को होगी, इसकी तो हमें कल्पना करनी पड़ेगी। मांस-मदिरा के आदी अथवा चाय-बीड़ी के आदी को उसके बिना एकाधदिन भी असह्य लगता है। एक बार राजगृह नगर में अहिंसा पालन की घोषणा की गई। यह उद्घोषणा सुनकर रेवती का रोम-रोम दुःख से भर गया। परन्तु पापी व्यक्ति सत्ता और पैसा के बल पर कौन सा पाप नहीं करते? अपने निजी सेवकों के द्वारा गप्त रूप से अपने मायके से प्रतिदिन दो-दो बछडे मरवाकर मँगाने लगी और मांस-मदिरा में मस्त होकर आनन्दपूर्वक समय व्यतीत करने लगी। इस सम्बन्ध में करनी पड़ती उपेक्षा क्या संसार का नग्न चित्र प्रस्तुत नहीं करती है? इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रायः उत्तम कुल में उत्तम जीव ही जन्म लेते हैं, और श्रेष्ठ वातावरण पाकर वे अपने गुणों का विकास कर सकते प्रभुवीर के दश श्रावक.. ६४

Loading...

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90