________________
उनका मान-सम्मान घर में, जाति में, नगर में, और राजदरबार में भी था। प्रभु धर्म को प्राप्त करने के पहले भी वे सर्वजनप्रिय थे। __परन्तु जिस दिन प्रभु मिले, उनके वचनों को सुना और उन वचनों को
आत्मसात् किया, उस दिन से मानो कायापलट ही हो गई। अब प्रभुवचन ही अर्थ-परमार्थभूत लगने लगा। इतना ही नहीं, मान-सम्मान और शान-शौकत भारस्वरूपलगने लगी।
रेवती आदि तेरह पत्नियाँ खानदानी और समृद्ध परिवारों से आई थीं। रेवती उनमें मुख्य थीं। वह आठ करोड़ सुवर्ण और आठ गोव्रज के साथ और अन्य बारह पत्नियाँ एक करोड़ सुवर्ण और एक गोव्रज के साथ आई थीं। यह उनकी व्यक्तिगत सम्पत्ति थी।महाशतक की सम्पत्ति अंक से गणनायोग्य नहीं होगा, इसीलिए कांस्यपात्र से उसका माप कराया होगा, ऐसा जान पड़ता है। प्रभुधर्म स्वीकार करने से पूर्व श्रावकों के समान विरति को स्वीकार कर रेवती आदि तेरह पत्नियों के सिवाय मैथुनविधिका पच्चक्खाण लिया और प्रतिदिन दो द्रोण से भरे हुए कांस्यपात्र से ही व्यवहार करना, इससे अधिक नहीं, इसका निर्णय लिया । जीवादि तत्त्वों के ज्ञाता बनकर व्रतधर जीवन जीने लगा। कारण कि अब प्रभु वचन ही अर्थभूत और परमार्थभूत लगने लगा, बाकी सबकुछ अनर्थभूत लगा।
रेवती की दुष्ट मनोवृत्ति अब तक हमने यह सुना है कि श्रावकों के पीछे उनकी धर्मपत्नियाँ भी श्रमणोपासिका का धर्म स्वीकार किया।यहाँ इससे बिल्कुल विपरीत बात है। अर्थ-काम के प्रति अति लुब्धरेवती पर महाशतक का कोई प्रभाव नहीं पड़ सका।उसकी मनोवृत्ति अतिदुष्टहै।वह अतिविषयासक्त है। .
एक दिन रात में वह सोचती है : “इन बारह-बारह सौत के कारण मैं इच्छापूर्वक सुख-भोग नहीं कर पाती हूँ।वे मेरे सुखों को बाँट लेनेवाली हैं।
अतः मुझे इन बारहों सौतों को समाप्त करनी या करा देनी चाहिए।और उसकी सारी सम्पत्ति मुझे ले लेनी चाहिए।"आसक्ति का अतिरेक जीव को कितना क्रूर बना देता है!
वह सदा सौतों का छिद्रान्वेष करती रहती है, और अपने विचारों को प्रयोग में ला देती है। कुछ ही दिनों के बाद बारह में से छः सौतों को शस्त्र प्रयोग
................प्रभुवीर के दश श्रावक
६३