Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 78
________________ सभा : लेकिन हमें अपने बालकों को शिक्षण के लिए भेजना तो पड़ेगाना, वहाँ उनका क्या होगा? । - पूज्यश्री : इसके लिए तो पहले आपको ही समझना पड़ेगा । उसके बाद सभी श्रावकगण एकत्र होकर अपने सन्तानों के संस्कारों की चिन्ता से आयोजन कर सकते हैं । इसमें यदि शास्त्रीय दृष्टि से हमारे मार्गदर्शन की आवश्यकता हो तो मांगी जा सकती है।परन्तुहमारे गले में घण्टी नहीं बांधनी है। - प्रतिमावहन : रेवती की रौव्रता ... मूल बात पर आते हैं, हम महाशतक के प्रसंग का विचार कर रहे हैं। घर की अति गम्भीर हालातों के बीच वह आगे बढ़ रहा है। श्रमणोपासकत्व के चौदह वर्षों के बाद ज्येष्ठ पुत्र को सारी जिम्मेदारी सौंपकर पौषधशाला में प्रवेश कर श्रावक प्रतिमाओं का आदर करते है और निष्ठापूर्वक उसकी आराधना करते है। .. उसकी पत्नी रेवती तो अतिकामासक्त है।मांस-मदिरा की अति लोभी है। श्रमणोपासक का यह त्यागमय जीवन भला वह क्यों पालेगी? एक दिन मांस-मदिरा में मस्त बनकर, बाल खोले, वासना से उन्मत्त होकर लड़खड़ाती हुई आराधना में डूबे महाशतक की पौषधशाला में रौद्ररूप धारण कर आ पहुंचती है। विषयासक्ति की विषकथा - हे देवानुप्रिय ! आप मेरे साथ इच्छित भोग करते थे, वह सब छोड़कर यहकहाँ आ पहुँचे?आप जिस स्वर्ग-मोक्ष की इच्छा करते हो, जिस धर्म-पुण्य का संचय करते हो, परन्तु स्वर्ग-मोक्ष में इससे बढ़कर कौन से सुख हैं ? धर्मपुण्य से इससे अधिक क्या फल मिलेगा ? मेरे साथ मनुष्य से सम्बन्धी सुख क्यों नहीं भोगते? .. ___महाशतक मौन रहा। बारम्बार कहने पर भी कोई ध्यान नहीं दिया तो वह अपमानित होकर वहाँ से चली गई । महाशतक ने श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का विधिपूर्वक आराधना की । उसमे निर्विघ्न रूप से अपनी आराधना सम्पन्न की, परन्तु अति विषयासक्त रेवती विषम दशा को प्राप्त हुई। एक रात महाशतक श्रावक को अपने शरीर की अत्यन्त कृश दशा को देखकर प्रभुवीर के दश श्रावक... ६६

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