Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 77
________________ हैं । परन्तु जिनका भावी ही खराब हो, ऐसे दुष्ट जीवों की क्या बात करनी ? आज भी उत्तम माता-पिता के परिवार की कैसी स्थिति देखने को मिलती है ? यद्यपि इसमें बाल्यकाल का अति प्यार, पूर्वजन्म के संस्कार का अभाव और लोगों की देखा-देखी भी कारण होता है । आज नास्तिकता, दम्भ और विषयासक्ति को पैदा करनेवाला शिक्षण, पाश्चात्य संस्कृति का आकर्षण आदि इसके अनेक कारण हैं । कभीकभी तो माता-पिता पहले स्वयं भी नहीं समझते होते हैं । अतः पुत्र-पुत्रियों को स्वयं ही सिर पर चढ़ा बैठते हैं, परन्तु जब वे समझते हैं, तबतक बहुत देर हो चुकी होती है । कभी-कभी तो जब समझता है, तभी से परिवारजनों का निर्विवेक दबाव, आवश्यकता से अधिक आग्रह आदि के कारण भी नई पीढ़ी उत्तम संस्कारों से तथा अच्छे वातावरण से दूर होती जाती हैं। आज के वैज्ञानिक युग के शोधव नए-नए साधनों का भी दुष्प्रभाव समाज के ऊपर देखने को मिलता है । यह सब कहाँ जाकर विराम लेगा, कुछ पता नहीं चलता । आज के इस आधुनिकतावाद को देखकर नई पीढ़ी का भावी बहुत ही बुरा प्रतीत होता है, परन्तु हताश और निराश होकर बैठ जाने से क्या मिलेगा ? सभा : ‘साहेब, इसमें आपका भी तो कुछ कर्त्तव्य है या नहीं ? ' पूज्यश्री : हम अपनी मर्यादा में रहते हुए आपको आवश्यक मार्गदर्शन दे सकते हैं, यह तो अपने महापुरुषों के काल से ही आपको देते आए हैं। परन्तु हम अपनी मर्यादा का उल्लंघन कर कुछ भी नहीं कर सकते हैं। सभा : मर्यादाओं के नाम पर आप हमसे अपना पीछा छुड़ाना चाहते हैं, क्या ऐसा नहीं लगता? पूज्य श्री : पीछा छुड़ाने की बात नहीं है । हमारी बुद्धि और संयोगों के अनुसार संविज्ञगीतार्थ हमारे महापुरुषों ने जो मर्यादाएँ बतलाई हैं, उसके अनुसार कहा जाता रहा है, और आगे भी कहा जाता रहेगा । उपदेशक के रूप में हमारी मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए आज भी आबालवृद्धों को उचित प्रयत्न, व्याख्यान-वाचनाओं आदि के माध्यम से हो रहा है और शक्ति के अनुसार होता रहेगा। परन्तु आपके उपकार के नाम पर आज साधुसंस्था में जो कुछ लोग छूट आदि ले रहे हैं, यह आत्मघाती कदम है, यह भूलने योग्य नहीं है। प्रभुवीर के दश श्रावक ६५

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