Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan
View full book text
________________
महाशतक श्रावक
__ अर्थभूत : परमार्थभूत : प्रभुवचन मगधसम्राट् श्रेणिक महाराज की राजधानी राजगृह नगर में धन्नाजी शालीभद्रजी के समान अनेक धनाढ्यों में महाशतक भी एक थे। राजगृही के नालन्दा पाड़ा में प्रभु ने चौदह चातुर्मास और विचरण से उस समय में प्रतिबोधपानेवालों के दृष्टान्त शास्त्र के पृष्ठों पर उल्लिखित हैं। महाशतक उनमें एक थे । धर्म प्राप्त करने से पहले और बाद की परिस्थिति योग्य जीवों का आलम्बनरूप होती है।अर्थ और काम को सर्वस्व माननेवाला मनुष्य प्रभुवचन को प्राप्त करने के साथ ही परमात्मा के वचन को ही सर्वस्व मानने लगता है, अर्थभूत-परमार्थभूत मानता है और इसके सिवाय के सबकुछ अर्थात् अर्थकाम को भी अनर्थभूत के रूप में स्वीकार करता है।
प्रभुशासन के साथ मन लगाना ही महत्त्वपूर्ण है। फिर वह संसार के लिए कायपाती बन जाता है।शरीर से अवसरोचित जो कुछ करना पड़ता हो, वह करता है, परन्तु उसका मन तो प्रभु वचन के साथ ही संलग्न रहता है। आठ करोड़ सुवर्णमुद्राएँ भंडार में, उतनी ही व्यापार में और घर-व्यवसाय में लगानेवाले और आठ-आठ गोकुलों और जमीनदारी के धारक होने के कारण
प्रभुवीर के दश श्रावक.
૯ ૨

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90