Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 72
________________ संसार के सुखभोग में सहभागिनी बनने वाली तो सभी स्त्रियाँ होती हैं, परन्तु अग्निमित्रा धर्मकार्य और कर्त्तव्यपालन में भी प्रति की सहायिका थी । मात्र दिखावे की प्रेरणा देनेवाली तो आज भी होती हैं । परन्तु पूर्णरूप से सहायक बनने के उत्तरदायित्व को वहन करनेवाली पत्नी ढूँढने से भी कहाँ मिलती हैं ? धर्मपत्नी कहलाना या अर्द्धांगिनी के रूप में जाना जाना तो सबको पसन्द है, परन्तु कर्त्तव्यपालन कहाँ से लाया जाए ? धर्म ही जिसका दूसरा आधार है, अथवा अपने दूसरे सहायक के रूप में जिसने धर्म को ही माना है, ऐसी धर्मवैद्या, अर्थात् जीवन में धर्म की शिथिलता को देखते ही पति की मानसिकता का ध्यान रखते हुए उसे स्वस्थ बनानेवाली के रूप में प्रसिद्ध होने के लिए ही 'धम्मबिइज्जिया' शब्द का प्रयोग किया गया है । प्रेरणा की सहायता में ही अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री न मान लेनेवाली स्वयं भी धर्म के अनुराग' में रंगा जाना एक कठिन कार्य है। सुख-दुःख में सहभागिनी होना, इस चौथे विशेषण का प्रयोग किया गया है । ऐसी अग्निमित्रा ने श्रावक को उपसर्ग की सम्भावना और उसकी चलचित्तता का ध्यान दिलाया। आत्मशुद्धिकर प्रायश्चित करने की प्रेरणा की । प्रभुशासने के मर्म के ज्ञाता उस महानुभाव ने भी शुद्ध हृदय से आलोचना की, प्रतिमा के वहन में दृढ़ बना । अन्त में मासिक संलेखना के द्वारा अनशन कर साठ भक्त का त्याग करते हुए पार्थिव देह का त्याग करते हुए सौधर्मदेवलोक की धरा पर अरुणभूत विमान में देव हुए। चार पल्योपम का आयुष्य पूर्ण कर महादिह क्षेत्र में मानव जन्म पाकर सर्वत्यागमय धर्म की निष्कलंक साधना के द्वारा सर्व कर्मों का क्षय कर श्रीसिद्धपद को प्राप्त करेंगे । यह अध्ययन बहुत सारी विशेषताओं से युक्त है। कुछ बातें तो प्रत्येक के प्रसंग में सामान्य ही आती हैं । परन्तु सकडालपुत्र श्रमणोपासक की पूर्वावस्था, उनकी गोशालक मतकी आस्था, दैवी संकेत, प्रभु का पदार्पण.. और प्रभु के प्रश्न । तत्त्वचर्चा और तत्त्वनिर्णय के बाद भी अडिग श्रद्धा एक विशिष्ट आदर्शरूप हैं। संसार मार्ग से बचने और मोक्षमार्ग की साधना के लिए मूलभूत तत्त्वों पर रखा गया भार इस प्रसंग के महत्त्व का सार है । प्रभुवीर के दश श्रावक & O

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