Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 66
________________ सकडालपुत्र श्रावक . उस काल में और उस समय में भगवान महावीरदेव का विचरणकाल भिन्न-भिन्न धर्मावलंबियों और धर्मप्रचारकों का काल था। . . . प्रत्येक काल में मत-मतान्तर होते हैं और रहते हैं। परन्तु उस काल में उस समय में धर्म-स्थापक और प्रचारक कुछ विशिष्ट शक्तियों आदि के प्रभाव से स्वयं को सर्वज्ञ के रूप में प्रस्थापित करनेवाले तथा निवेदनों और समाधानों के द्वारा अच्छे-अच्छों का दिमाग घुमा देनेवाले होते थे। . श्रीसुयगडांगसूत्र में तीन सौ तिरसठ पाखंडियों की बातें आई हैं, जो क्रियावादी, अक्रियावादी, विनयवादी और अज्ञानवादी इन चार विभागों में विभाजित हैं। .. ... आत्मा के अस्तित्व आदि का वर्णन, आत्मा आदि का न होने का वर्णन, सबको नमस्कार करते रहना, सर्वत्र विनय करना चाहिए । इससे सम्बन्धित प्रचार ! यह देखने और जानने का विष है, अतः 'अज्ञानं खलु श्रेयः' अज्ञानता ही अच्छी है। आदिबातों के प्रचार का काल था। प्रभ के समान सर्वज्ञ की उपस्थिति में ऐसे अनेक मत प्रचलित हों, तो प्रभुवीर के दश श्रावक...

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