Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 62
________________ कुंडकौलिक श्रावक .. ... प्रभु का पदार्पण : भाग्य की ईर्ष्या . श्रमण भगवान श्री महावीरदेव जिस समय स्वयं स्वदेह से पृथ्वीतल को पावन कर रहे थे, उस समय के भव्यात्माओं का भाग्य कैसा होगा, इसके प्रति ईर्ष्या उत्पन्न होती है। - प्रभु स्वयं आंगन में पधारें, यह कैसे सम्भव है? परन्तु प्रभु के पधारने पर भी जिनके भाग्य फूटे हों, वैसे ही जीव उनके दर्शन और श्रवण से वंचित रह जाते होंगे। कांपिल्यपुर का सहस्रामण वन आज प्रभु के पदार्पण से मानो सजीव हो उठा था।वृक्षों के पत्तेमानो प्रसन्नता से नाच उठे थे। ____ राजा जितशत्रु और धर्मरुचि प्रजा प्रभु के चरण चूमने और उनकी वाणी में स्नान-पान करने को वहाँ आ पहुंची थी। . .. जन्मजात अठारह करोड़ स्वर्णमुद्राओं को तीन भागों में विभाजित कर विवेकपूर्ण वैभव जीवन जीते हए सम्माननीय व्यक्तित्व को प्राप्त कंडकौलिक गाथापति भी गोकुल-जर-जमीन से भरा-पूरा होने के साथ-साथ एक सच्चे सलाहकार के रूप में आदरपात्र था। जीवन में पहली बार आज उसे एक श्रेष्ठ सलाहकार मिला था । प्रभुवीर के दश श्रावक.. ५०

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