Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 39
________________ यदि हम अपने व्यक्तिगत अहंभाव से बाहर निकलने के लिए तैयार न हों और मात्र श्री जिनाज्ञा को प्रधान मानकर जीने का प्रयत्न न करें तो आराधक भाव कैसे प्राप्त हो सकता है ? विराधक भाव को मूल से ही उखाड़ना होगा और आराधक भाव प्राप्त करना होगा तो व्यर्थ के कषायभाव से बाहर निकलना और प्रशस्त कषाय का सेवन करना भी सीखना पड़ेगा । लोकोत्तर शासन विवेक प्रधान है । इसीलिए विवेक पूर्वक एक-एक व्यवहार आराधक बनानेवाले हैं, यह भूलने योग्य नहीं है। -- -- ......................प्रभुवार का ..प्रभुवीर के दश श्रावक २७

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