Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ वही हुआ। वहदेव को पकड़ने को दौड़ा, . परन्तु देवतो अदृश्य हो गया। सुरादेव के हाथों में घर का खंभा आया, वह चिल्ला उठा। पत्नी धन्या तुरन्त आकर पूछती है, 'स्वामीनाथ! क्या हुआ? तब उसने रात्रि की घटना का वर्णन किया। यह सुनकर धन्या ने देव की परीक्षा की बात की, और प्रायश्चित करने की प्रेरणा की । सुरादेव भी पश्चात्ताप पूर्वक शुद्धि को स्वीकार कर साधना में लीन हो गये। . देहाध्यास और साधना राग-द्वेष की परिणति कैसी पीड़ादायक होती है ? साधकों को भी शरीर की पीड़ा कितना कष्ट देती है ? देहाध्यास पर विजय प्राप्त करना बहुत ही कठिन है। : अनादिकाल से शरीर के साथ सम्बन्धजुड़ा हुआ है। वह तोड़ना सरल नहीं है। परन्तु वह तो उत्तम आत्मा थी, इसका विचार आते ही पुनः समताभाव में आकर ध्यानमग्न हो गये । नहीं तो एक बार आवेश में आने के बाद जल्दी समताभाव नहीं आता है। .. वे महानुभाव तो पुनः साधना में लीन हो गए । बाकी देहाध्यास और प्रगट हुए.कषायों को दूर करना ही कठिन है। श्रमणोपासक की शेष प्रतिमाएँ अडिगता से पूर्ण की । बीस वर्ष का श्रावक पर्याय पूर्ण कर आयुष्यपर्यन्त में देहत्याग कर सौधर्म देवलोक के अरुणकान्त विमान में चार पल्योपम की स्थिति वाले देव हुए । वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में मानवजन्म प्राप्त कर सर्वविरति की निर्मल साधना कर सर्व कर्मों का क्षय . कर सिद्धिपद को प्राप्त करेंगे। जो सिद्धि दिलाए, वही साधना कहलाती है। वे साधना की फलश्रुति प्राप्त करेंगे। श्रेष्ठ श्रावक के रूप में जीनेवाले एक सद्गृहस्थ की साधना, परीक्षा और प्रगति हमारे लिए अनन्य आदर्श पैदा करती है। प्रभुवीर के दश श्रावक... ४२

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90