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उसका प्रभाव और प्रताप सर्वत्र छाया हुआ था।
राजा-प्रजा सबके लिए सच्ची सलाह के लिए विश्वासकेन्द्र के समान उसका जीवन था।
प्रभु धर्म को प्राप्त करने से पहले भी सबका विश्वास प्राप्त करना आसान नहीं है, यह उसने प्राप्त किया था।
अर्थऔर काम के अति लोभी जीवों के लिए तो यहस्वप्न में सम्भव नहीं है। अतिलोभ प्रायः मनुष्य को अतिपापी बनाए बिना नहीं रहता। ऐसे लोगों की पड़छाई से भी बचना चाहिए।
चुल्लशतक अपने जातिजनों-स्वजनों-प्रजाजनों और राजा आदि राजपुरुषों के लिए विश्वास का केन्द्र बन सका, यह उसकी आन्तरिक ऋद्धिका प्रतीक है।
बाह्य ऋद्धि हो या न हो, परन्तु आन्तरिक ऋद्धि मनुष्य को सही अर्थों में समृद्ध बनाती है। चुल्लशतक बाह्य और आन्तरिक दोनों ऋद्धियों का मालिकथा।
दोषों के प्रति दुर्भाव और सद्गुणों के प्रति सद्गाव ही मनुष्य को विश्वसनीय बना सकता है। ये उसके जन्मजात गुण थे।धर्म को प्राप्त करने के पूर्व भी चुल्लशतक गाथापति की यहमहानता उल्लेखनीय है। .
. ' आषाढीबादल और मयूर · मार्गानुसारी कोटि के श्रेष्ठ गुणों से छलकता हुआ मनुष्य यदि बाह्यऋद्धि से भी सम्पन्न हो तो उसकी विशेषता और भी बढ़ जाती है। चुल्लशतक सद्गृहस्थ की आलंभिका के धनाढ्य लोगों में गिनती होती थी। करोडो की संख्या में जिसकी गीनती की जाती थी ऐसी छेः छः करोड स्वर्णमुद्राएँ वैभव में व्यापार में वभंडार में सुरक्षित थी।
दस हजार गायों से भरे हुए छ:-छः गोकुल थे।
इसके अतिरिक्त प्राचीन काल की जमीन्दारी उन्हें राजा-महाराज की श्रेणी में ला खड़ी करती थी।
धन-दौलत मनुष्य को अहंकारी बनाने में समर्थ है, यदि मनुष्य विवेकी न हो।परन्तु विवेक की दृष्टिजिनके पास होती है, वे धन-सत्ता और रूप आदि की उपस्थिति में भी सौम्यदृष्टिबने रहसकते हैं।
प्रभुवीर के दश श्रावक........
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