Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 48
________________ चूलनी पिता श्रावक मोहबन्धन का एक दृष्टान्त मोहमाया का बन्धन साधक के लिए जंजीर के समान होता है । थोड़ा सा भी मोह साधक की साधना की धज्जियाँ उड़ा देने में समर्थ है। चूलनी पिता की जीवनकथा, उसकी उच्चतम साधना में जंजीर बननेवाले मोहबन्धन का एक विशिष्ट दृष्टान्त है। मोह एक ऐसा बन्धन है, जो न तो बन्धने के समान लगता है और न बांधे बिना रहता है । व्यक्तित्व का निखार ये तीसरे महानुभाव भी जन्म से जैन नहीं हैं । सम्पन्नता का जोरदार ठाट होने के बावजूद उद्धताई का अंश धर्म प्राप्त करने के पहले भी नहीं था । आठ करोड़ सुवर्ण भंडार में है। आठ करोड़ सुवर्ण व्यापार में लगे हुए हैं । जीवन के ठाट-बाट भी आठ करोड़ सुवर्ण की सामग्रियों के द्वारा सर्वत्र बिखड़े हुए हैं। प्रभुवीर के दश श्रावक ३६

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