Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 50
________________ छिड़काव करूँगा,जिससेतू दुर्ध्यानपूर्वक अकाल ही अवसान को प्राप्त करोगे। - ऐसा कहकर उसी प्रकार करने को तैयार होता है। - उस समय अपने सन्तानों की हत्या के समय निश्चल रहनेवाला वह महानुभाव माता की भक्ति और मोह बन्धन से व्याकुल होकर देव को पकड़ने दौड़ता है। परन्तु देव तो अदृश्य हो जाता है। उसके हाथ में एक स्तभ आते ही वह क्षुब्धहो उठा। ऊँची आवाज में चीख पड़ता है। उसकी माता तुरन्त कहती है 'बेटा, यहतो कोई देव तुम्हारी परीक्षा ले रहा है। तू प्रतिज्ञा से विचलित हो गया। अब प्रायश्चित कर पहले तुम शुद्ध हो जाओ। और धर्मध्यान में आरूढ़ हो जाओ।' माता के वचन को स्वीकार कर वह विधिपूर्वक आत्मशुद्धि को स्वीकार करता है। . ऐसे महासाधकों को कैसी-कैसी परीक्षाएँ होती हैं। . और कैसे-कैसे निमित्त मिलते हैं। - सात्विक शिरोमणि भी विचलित हो जाते हैं। तो अपने मोहबन्धन की जंजीर को कैसे तोड़ें।यहविचार करने योग्य प्रश्न है। . . . बाद में तो यह महानुभाव सूत्र-विधिके अनुसार ग्यारह प्रतिमाएँ पूर्ण करते है। ... बीस वर्ष के व्रत पर्याय को पूर्ण करते है। - प्रायश्चित शुद्धिपूर्वक समाधिके साथ देह-त्याग कर प्रथम देवलोक के अरुणप्रभ विमान में उत्पन्न हुए है। चार पल्योपम का आयुष्य पूर्ण कर महाविदेह की भूमि के भूषण बनकर मोक्षपद को प्राप्त करेंगे। . निकट मोक्षगामी भव्यात्माओं को अन्तर्शोधका खजाना देनेवाली जीवन-कथा भव की थकान उतार देने जैसी है। प्रभुवीर के दश श्रावक. ३०

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