Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 46
________________ शोभा बड़े-बड़े मिथ्यात्वियों के मिथ्यात्वको भी पिघला डाले, ऐसी होती है। नगरजन और राजा भी राजपरिवार के साथ देशना सुनते हैं। कामदेव श्रावक भी प्रभुदर्शन-वन्दन और वाणी-श्रवण के बाद ही पारणा करने का निर्णय करके ही समवसरण में आते है। प्रदक्षिणा, वन्दन आदि करते हुए प्रभु की पर्युपासना करते है। देशना पूर्ण होने के बाद श्रमणगण सहित चारों प्रकार के श्रीसंघ के विशेष लाभ देखते हुए प्रभु कहते हैं : 'हे, कामदेव तुझे दैवी उपसर्ग हुआ, तूने तीनों उपसर्गों को अच्छी तरहसे सहन किया, देव क्षमायाचना करके गया, क्या यह बात सच है?' तब कामदेव कहता है: 'प्रभोआप जैसा कहते हो, वैसा ही है।' तब प्रभु वहाँ उपस्थित श्रमण निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थिनियों को उद्देश कर कहते हैं : 'हे आर्यो ! श्रमणोपासक गृहवास में रहते हुए भी यदि देवों, मनुष्यों और तिर्यंचों के उपसर्गों को उचित रूप से सहन कर सकता है तो द्वादशांगी और गणिपिटक पढ़नेवाले श्रमण क्यों नहीं सहन कर सकते हैं ?' महात्मागण भी प्रभु के वचन को तहत्ति कहकर तप-संयम में विशेष रूप से अनुरक्त बन जाते हैं। उन महात्माओं की भी कैसी महानता होगी? कामदेव भी अपने कई प्रश्नों के उत्तर प्राप्त कर प्रसन्न हृदय से स्वस्थान गये। .. .. .. __.. प्रभु ने अन्यत्र विहार किया। __ग्यारह प्रतिमाओं को विधिपूर्वक पूर्ण कर अन्तिम एक महीने की संलेखनापूर्वक साठ भक्त का वर्जन कर आत्मा को भावित बनाया । आलोचनाशुद्धिपूर्वक बीस वर्षों का श्रावक-धर्मपर्याय पूर्ण किया। समाधिपूर्वक देहत्याग कर सौधर्म देवलोक के ईशान दिशा में स्थित अरुणाभ देवविमान में चार पल्योपम की स्थितिवाले देवत्व को प्राप्त किया। दिव्य देवसुखों के बीच भी निर्मल सम्यक्त्व के प्रभाव से आयुष्य निर्गमन कर महाविदेह क्षेत्र में श्री सिद्धिपद को प्राप्त करेंगे। प्रभुवीर के दश श्रावक.. ३४

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