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यदि हम अपने व्यक्तिगत अहंभाव से बाहर निकलने के लिए तैयार न हों और मात्र श्री जिनाज्ञा को प्रधान मानकर जीने का प्रयत्न न करें तो आराधक भाव कैसे प्राप्त हो सकता है ? विराधक भाव को मूल से ही उखाड़ना होगा और आराधक भाव प्राप्त करना होगा तो व्यर्थ के कषायभाव से बाहर निकलना
और प्रशस्त कषाय का सेवन करना भी सीखना पड़ेगा । लोकोत्तर शासन विवेक प्रधान है । इसीलिए विवेक पूर्वक एक-एक व्यवहार आराधक बनानेवाले हैं, यह भूलने योग्य नहीं है।
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......................प्रभुवार का
..प्रभुवीर के दश श्रावक
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