Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 37
________________ यह सुनकर आनन्द श्रावक कहते है : 'प्रभो ! जैनशासन में सत्य, तथ्यपूर्ण और अद्भुत भावों के लिए क्या आलोचना तपः कर्म स्वीकार किया जाता है ?' गौतमस्वामी : 'नहीं, आनन्द ! ऐसा नहीं होता ।' आनन्द : 'तो प्रभो ! आप ही इस स्थान के लिए आलोचना करें और तप स्वीकार करें ।' आपके मन में प्रश्न उठता होगा कि क्या एक श्रावक इतने बड़े महापुरुष को क्या ऐसा कह सकता है ? हाँ, अवसर आने पर विनम्र भाषा में श्रावक भी ऐसा कह सकता है। श्रावक को साधु के माँ-बाप कहे गये है। पता है ना ? आज आप अपना नैतिक फर्ज चूक गए है, जिसके कंटु परिणाम. जग विख्यात हैं। भगवान श्री गौतम महाराज तो ये बातें सुनकर शंकित हो गए। तुरन्त भगवान के पास पहुँच गए। स्वयं चार निर्मल ज्ञान के धारक होते हुए भी अपने ज्ञान का उपयोग न कर प्रभु के पास जाकर अपनी बात कही, तब प्रभु महावीर - प्रभुवीर के दश श्रावक २५

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