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उसके बाद भगवान श्री महावीर परमात्मा ने विहार कर अन्यत्र प्रस्थान किया । महानुभाव श्री आनन्द श्रावक अब हड्डियों का ढांचा बन चुकी अपनी कमजोर काया के द्वारा स्वीकृत संलेखना की यथावत् आराधना करने लगे। चौदह-चौदह वर्षों तक प्रभु को प्राप्त करने के बाद की गई श्रावक व्रत की आराधना, पिछले छः वर्षों में ग्यारह प्रतिमाओं की उत्कृष्ट आराधना और धमनी समान जैसी बन चुकी काया से भी साठ भक्त का, अर्थात् लगभग एक मास का चौविहार उपासपूर्वक अनशनत से आयुष्य पर्यन्त शरीर का त्याग कर वह महामना सौधर्मदेवलोक में अरुणविमान में उत्पन्न हुआ। चार पल्योपम का आयुष्य पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में सिद्धिगति को प्राप्त करेंगे ऐसा भगवान श्री महावीरदेव ने श्री गौतमस्वामीजी के द्वारा पूछेगए प्रश्नों के उत्तर में कहा है।
इस प्रकार आनन्द गाथापति श्रमणोपासक बनकर जो अद्भुत साधक बने है, उसका जीवन हमने देखा । अब आगे के अध्ययनों में कामदेव आदि श्रावकों के वर्णन में जो विशेषता होगी, उसीका वर्णन सूत्रकार करेंगे। इसके अतिरिक्त उसके द्वारा व्रत-नियम स्वीकार आदि सबकुछ आनन्द श्रावक की भांति समझ लेना है। ।
प्रभुवीर के दश श्रावक.
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