Book Title: Prabhu Veer ke Dash Shravak
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 17
________________ गुण जीवन में विकसित होने के कारण रंक से राजा तक के लिए आदरपात्र व्यक्तित्व को धारण करनेवाले इस महानुभाव को प्रभु के सुयोग ने जो फल प्रदान किया है, उसे देखने से पहले हमें उसकी पूर्वावस्था की चर्चा करनी है। वह 'अड्डे' अर्थात् ऋद्धिसम्पन्न थे । अर्थात् ऋद्धि सम्पन्नता गुण नहीं है, फिर भी ये शब्द उसकी न्यायनिष्ठा का संकेत करता हुआ प्रतीत होता हैं । प्रमाणिकता आदि गुणों की ऋद्धि थी और पुण्ययोग से धन ऋद्धि से भी सम्पन्न थे। सम्पत्ति ' शास्त्र में उसकी सम्पदा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि चार करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ निधानरूप में थीं। चार करोड़ व्यापार में लगी.हुई थी और चार करोड़ घर चलाने के लिए आवश्यक वैभव धन-धान्य आदि में जुड़ी हुई थी। इस प्रकार वह बारह करोड़ स्वर्णमुद्राओं का मालिक था, साथ ही दस हजार गायों का एक व्रज (गोकुल) ऐसे चार गोकुल अर्थात् चालीस हजार गायें उसके स्वामित्व में थीं। अपनी सारी सम्पत्ति व्यापार या व्यवहार में न लगाकर भविष्य में आने वाले संकट के समय को ध्यान में रखकर चिन्तामुक्त जीवन जीने का निर्देश उनकी यह नीति-रीति से प्रतीत होता हैं। वे बहुत बड़े जमीनदार होंगे, एसी भी कल्पना की जा सकती है। ये श्रावकत्व प्राप्त करने से पूर्व की स्थिति का वर्णन है। प्रभु को प्राप्त करने के बाद तो उसने जो मर्यादा बांधी है उसका वर्णन हमें आश्चर्यचकित कर दे ऐसा है। __ इतनी सम्पत्ति और प्रभुत्व होते हुए भी उसकी विशालता, उदारता • आदि कितने आदर्श हैं और सर्वजन हितकारी व्यवहार कितना विशिष्ट है, जिसके कारण सर्वत्र सम्मानपात्रं बन रहे है। फिर वह राजदरबार हो या समाज व्यवस्था, घर हो या बाज़ार, सब जगहसर्वोत्कृष्ट बनकर रहे होंगे, ऐसा लगता है। इसीलिए मेढी-प्रमाणभूत और चक्षुभूत के रूप में जाने जाते है। 'सव्व कज्ज वट्ठावए' कहकर वह उत्तम हितकर कार्य तथा गुण-सम्पन्न व्यक्तियों को प्रोत्साहन देनेवाले थे। किसी को तोड़नेवाले या तुच्छ माननेवाले नहीं थे। अर्थात् धर्म प्राप्त करने के पूर्व भी सर्वजनों के द्वारा आदरणीय क्यों थे, इसका अन्दाजा लगाया जा सके यह सच्चाई है। महानुभावो, आपको इन श्रेष्ठ श्रावकों की बातें सुनकर क्या करना है? उनके जैसा बनने का प्रयत्न करेंगे क्या? __मान भरतबा नगर के राजा, सार्थवाह, ऐश्वरशाली मन्त्री-महामन्त्री, अमात्य आदि .प्रभुवीर के दश श्रावक

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